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________________ २८६ ] श्रीप्रवचनसारटोका | श्री नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्तीकृत गोमटसार कर्मकांड पंचम अध्याय में वर्णन है कि जैनधर्म से बाहरके धर्मसाधक नीचे प्रमाण गति पाते हैं श्याय परिव्वाजा वह्मोत्तखुदपदोत्ति आजीचा | अणुदिशअणुत्तरादो बुदा ण केसवपदं अंति ॥ भावार्थ - चरक मतवाले साधु, परिव्राजक एक बँडी या त्रिदंडी उत्कृष्ट भवनादि त्रयसे लेकर ब्रह्मस्वर्ग तक पैदा होसक्ते हैं तथा आजीवक साधु ( जो नग्न रहते हैं ) कांजीकी भिक्षा करनेवाले उत्कृष्ट भुवनत्रयसे ले अच्युत स्वर्ग तक पैदा होसते हैं। तथा ९ अनुदिश व पांच अनुत्तरसे आकर नारायण प्रति नारायण नहीं होते हैं - तथा "अर्हत् लिंगधराः केचित् द्रव्य महाव्रताः उपरिमयैवेयिकांतमुत्पद्यते" जैनधर्मी नग्न साधु सम्यक्त रहित बाहरसे महाव्रतोंको पालनेवाले नौमें ग्रैवेयक तक पैदा होसते हैं । इसकी गाथा यह है - तिरियस अयदा उक्कसेण बुदोत्ति णिग्गंथा । परभयददेशमिच्छा गेवेज्जं तोत्ति मिच्छति ॥ भावार्थ- जो सम्यग्दृष्टी मनुष्य या तिर्यच असंयत हों व देश व्रती हों वे उत्कृष्ट अच्युत स्वर्ग तक पैदा होते हैं, परंतु जो बाहर में निर्ग्रथ साधु हों व भावोंमें चौथे गुणस्थानी 'असंयत हों व पंचम गुणस्थानी देश संयत हों अथवा मिथ्यादृष्टी हों वे नौमें ग्रेवेयक तक पैदा होते हैं । उत्थानिका- आगे फिर भी कहते हैं कि जो जीव सम्यग्दर्शन तथा व्रत रहित पात्रोंके भक्त हैं वे नीच देव तथा मनुष्य होते हैं Sung
SR No.009947
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 02 Charitratattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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