SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीवचनसार मापाटीका । [ ३१९ wwwwwwwwwwwwww mw पार्थ- गामा आचार्यने अपना पक्का निश्चय प्रगट किया है कि कनोको नाशकर शुद्ध मुक्त होनेका यही उपाय है कि पहले अरहंत परमात्मा द्रव्य, गुण पर्यायको रामझकर निश्वय लावे फिर उसी तरह or rपना है ऐसा निश्श्रयकर अपने शुद्ध स्वरूपको अनुभव करे। इसी स्वानुभवके द्वारा कर्मोका नाश हो जाता है, और यह भावनेवाला आत्मा स्वयं अरहंत परमात्मा हो जाता है । वह केवलज्ञान व्यवस्था में उसी ही मोक्षमार्गका उपदेश करता है जिससे अपने आत्माकी शुद्ध की है। मायुर्म शेष होनेपर सर्व शरीरोंसे छूटकर सिद्ध परमात्मा होजाता है । इसी ही रूपसे पूर्वकालमें सर्व आत्माओंने मुक्तिपद पाया है आज भी जो गोक्षमार्ग प्रगट है वह श्री महावीर भगवान अरहंत परमात्माका उपदेश किया हुआ है। उसी उपदेश से आज भीम मोक्ष पा रहे है। ऐसा परम उपकार रामझकर ma को पुनः पुन. नमस्कार किया है । तथा 1 वो हमसे प्रेरणा की है कि वे इसी रत्नत्रयमई ardar faara aid और उस गाडे प्रकाशक भरतों के भीतर परम श्रद्धा रखके उनके द्रव्य गुण पर्यायको विचार कर उनकी भक्ति करें । उन समान अपने नाम द्रव्यको जानकर अपने शुद्ध स्वरूपकी भावना करें | जो जैसी भावना करता है वह उस रूप हो जाता है। जो रहंत परमात्माका सच्चा भक्त है और तत्यज्ञानी है यह अवश्य शुद्ध आत्माका काम कर लेता है । श्री तत्त्वानुशासन में श्री नागसेन मुनिने कहा भी है:
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy