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________________ • ३१ अप्रिवचनसार भोपाटीका! . सव्वें लिय अरहता, तेण विधाणेण खधिद . . .. ___ . . . . . . . कमला। किचा तधोवदेस, णिवादा ते णमो तसिं ॥४॥ .. सऽपि चाहतस्तेन विधानेन अमितकमांशाः । . कृत्ला तथोपदेशं नित्तास्ते नगरोभ्यः ॥ ८८ ॥ सामान्यार्थ-इसी रीतिसे कर्मोझा नाशकर' सब ही आहत हुए-तब वैसा ही उपदेश देकर वे निर्वाणो प्राप्त हुए इसलिये उनको नमस्कार हो। ' अन्वय सहित विशेषार्थ-(तेण विधाणेण ). इसी विधानसे जैसा पहले कहा है कि पूर्व द्रव्य, गुण, पर्यायों द्वारा अरहंतोंके स्वरूपको जानकर फिर उसी स्वरूप अपने खात्मामें ठहरकर अर्थात् पुनः पुनः आत्मध्यान करफे (खविदकम्मेप्ता) कमौके भेदोंको क्षय करके ( सव्वे वि व भरता) सर्व ही अरहंत हुए (तदोवदेस किचा) फिर तैसा ही उपदेश करफे कि अहो भव्य जीवो ! यही निश्चय रत्नत्रयमई शुद्धात्माकी प्राप्ति रूप लक्ष पो धरनेवाला मोक्षमार्ग है दूसरा नहीं हैं (ते णिव्याया) वे भगवान निवृत्त होगए अर्थात् अक्षय अनंत सुखसे तुप्त सिद्ध हो गए (तेसिं गमो) उनको नमस्कार होहु । श्रीकुन्दकुंदाचार्य देव इस तरह मोक्षमार्गका निश्चय करके अपने शुद्ध आत्माके अनुभव स्वरूप मोक्षमागको और उसके उपदेशक अरहतोको इन दोनोंक स्वरूपकी इच्छा करते हुए "नमोस्तु तेभ्यः" इस पदसे नमस्कार -करते हैं-यह अभिप्राय है।
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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