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________________ ८] 'श्रीर्वचनसार भोपाटीको । घातिया कोसे रहित अरहंत परमात्मा ही उपादेयं या भक्तिके योग्य होसक्ते हैं। तीसरे विशेषणेसे यह बताया गया है कि प्रमुने हम जीवोंका बहुत बड़ा उपकार किया है अर्थात् मिस धर्मसे जीव उत्तम सुखको प्राप्त करें ऐसे सम्यक् धर्मको उन्होंने अपनी दिव्य चाणीसे प्रकाश किया है। इस विशेषणसे आचार्यने यह भी प्रगट किया है कि सशरीर परमात्मा हीके द्वारा निर्वाध और हित रूप धर्मका उपदेश हो सकता है। वचन वर्गणाएं पद्दलमई हैं उनका शब्द रूप संगठन अथवा उनका प्रकाश शरीर रहित अमूर्तीक परमात्मासें नहीं हो सका है। इसीलिये शरीररहित सिद्ध परमात्मा हितोपदेश रूपी गुणसे विशिष्ट नहीं माने जाते किन्तु शरीर सहित महंत भगवान् सर्वज्ञ और वीतराग होनेके सिवाय हितोपदेशी भी माने जाते हैं। चौथे विशेषणसे यह बताया है कि श्री वर्द्धमानस्वामी तीर्थ तुल्य हैं अथवा तीर्थकर पदविशिष्ट हैं। जैसे तीर्थ या जहाज़ स्वयं तिरता है और दूसरौके पार होनेमें सहाई होता है वैसे भरहंत भगवान स्वयं संसारसागरसे पार हो स्वाधीन मुक्तं होनाते हैं और उनका शरण लेकर जो उन्हींक समान हो उनहींके सदृश माचरण करते हैं वे भी अव उदधिसे पार उतर 'जाते हैं। अथवा वे वर्द्धमान स्वामी सा. मान्य केली नहीं हैं किन्तु विशेष पुण्यात्मा हैं-तीर्थकर पद धारी हैं-जिन्होंने पूर्वकालमै १६ कारण भावनाओं के द्वारा जगतका सम्यक् हित विचारा जिससे तीर्थकर नाम 'कर्म बांधा और तीर्थकर पदमें . अपने विहारसे अनेक नीवोंको परम मार्ग दर्शाकर उनका परम कल्याण किया । ऐसे चार गुण विशिष्ट वर्द्धमान
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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