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________________ श्रीभवचनसार भाषारीका। • असर स्मरण करनेवाले के वित्तमें पड़ता है इस लिये आचार्यने गायाम श्री वर्द्धमान स्वामी के कई विशेषण दिये हैं। पहला विशेषण देकर यह दिखलाया है कि प्रभुके गुणोंका इतना महत्व है कि जिनके चरणोंको चार तरहके देवोंके सव इन्द्र नमन करते हैं तथा चक्रवर्ती गजा भी नमस्कार करते हैं। इससे यह भाव भी सूचित किया है कि हमारे लिये मादर्शरूप एक अरहंत भगवान ही हैं किन्तु कषाय रूप अंतरंग और वस्त्रादि वाह्य सामग्री रूप बाह्य परिग्रह धारी कोई भी देव या मनुष्य नहीं इसी लिये हमको श्री अरहंत भगवानमें ही सुदेवपनेकी बुद्धि रखकर उन्हींका पुमन मनन तथा भनन करना चाहिये । दूसरे विशेषणसे श्री भरहंत भगवानका अंतरंग गौरव बताया है कि जिन चार घातिया कर्माने हम संसारी आत्माओंकी शक्तियोंको छिपा रक्खा है उना वातिया कर्माका नाशकर प्रभूने मात्माके स्वाभाविक विशेष गुणोंको प्रकाश कर दिया है। अनंत ज्ञान और अनन्त दर्शनले वह प्रभु सर्व लोक अलोकके पदार्थोको उनकी त्रिकालवर्ती पर्यायोंके साथ विना क्रमके एक ही समयमें जान रहे हैं । उनको किसी पदार्थके किसी गुणके जाननेकी चिन्ता नहीं रहती। वह सर्वको जानकर परम संतुष्ट हैं। जैसे कोई विद्वान अनेक शास्त्रों का मरमी होकर उनके ज्ञानसे सन्तुष्ट रहता है और उनकी तरफलक्ष्य न देते हुए भी भोजन व भजनमें उपयुक्त होनेपर भी उन शास्त्रोंकाः . ज्ञाता कहलाता है वैसे केवली भगवान सर्व ज्ञेयोंको मानते हुए भी उनकी तरफ उपयुक्त नहीं है। उपयुक्त अपने आपमें ही अपने स्वभावसे हैं इसीलिये अपने आनन्दमई अमृतके स्वादी होरहे हैं।
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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