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________________ LADITATEurका पवलाराम Amawwwww mummonin ‘पार होने का उपाय मई एक महान स्वरूप (बमाणे ) सब तरह अपने उन्नतरूप ज्ञानको धरनेवाले तथा रत्नत्रय मई धर्म तत्वके उपदेश करनेवाले श्री वर्षभान तीर्थकर परमदेवको (पणमामि) नमस्कार करता हूं। __भावार्थ-यहां अंथकर्ता श्रीकुंदकुंदाचार्य देवने मंयकी मादिमें मंगलाचरण इसी लिये किया है कि. मिस धर्म तीर्थके स्वामी श्री वर्धमान स्वामी थे उसी धर्मका वर्णन करने में उन्हींके गुण और उपदेशोंमें हमारा मन लवलीन रहे जिससे सम्यक प्रकार उस धर्मका वर्णन किया नासके । यह तो मुख्य प्रयोजन मंगलाचरणका है । तथा शिष्टाचारका पालन और अंतराय आदि पाप प्रकृतियों के अनुभागका हीनपना बिससे प्रारम्भिक कार्यमें विघ्न न हो गौण प्रयोगन है। महान पुरुषों का नाम लेना और उनके गुणोंको स्मरण करना उसी समय मनको अन्य चिन्तवनोंसे हटाकर उस महापुरुषके गुणों में तन्मय कर देता है जिससे परिणाम या उपयोग पहलेकी अपेक्षा उस समय अधिक वि. शुद्ध हो जाता है-उसी विशुद्ध उपयोगसे धर्मभावनामें सहायता मिलती जाती है। जबतक इस क्षेत्रमें दूसरे तीर्थकर द्वारा उपदेश न हो तबतक श्री वर्डमान स्वामीका शासनकाल समझा जाता है। वर्तमानमें जो गुरु द्वारा या भागम द्वारा उपदेश प्राप्त हो रहा है उसके साक्षात् प्रवर्तक श्री. वर्द्धमान स्वामी हुए हैं। इसीसे उनके महत् उपकारको स्मरणकर आचार्यने चौवीसवें तीर्थकर श्री वर्धमान भगवानको नमस्कार किया है । .. क्योंकि गुणों हीके द्वारा कोई व्यक्ति पूज्य होता है तथा गुणोंशा ही
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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