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________________ Siwww भीमवचनसार भाषांटीका। [१५१ ये नैव हि संजाता ये खलु नष्टा भूत्वा पर्याया। ते भवंति असद्भूताः पर्यायाः शानप्रत्यक्षाः ॥३८॥ सामान्यार्थ-जो पर्यायें अभी नहीं उत्पन्न हुई हैं तथा जो प्रगटपने पर्याय हो होकर नष्ट होगई हैं वे पर्याय असमृत होती हैं तथापि वे केवलज्ञानमें प्रत्यक्ष वर्तमानके समान झलकती हैं। ___ अन्वय सहित विशेषार्थ-( ने पज्जाया ) जो पर्यायें (णेन हि संजाया ) निश्चयसे अभी नहीं पैदा हुई हैं (जे खलु भवीय गट्ठा) तथा जो निश्चयसे हो होकर विनाश हो गई हैं (त) वे भूत और भावी पर्यायें (असम्भूया) असद्भूत या अविद्यमान (पन्जाया) पर्याय (होति) हैं, (गाण पञ्चक्खा) परन्तु वे सर्व पर्यायें यद्यपि इस समयमें विद्यमान न होनेसे असदभूत हैं तथापि वर्तमान में केवलज्ञानका विषय होनेसे व्यवहारसे भूतार्थ अर्थात् सत्यार्थ या सद्भूत कही जाती हैं क्योंकि वे सब ज्ञानमें प्रत्यक्ष हो रही हैं । जैसे यह भगवान केवलज्ञानी निश्चय नयसे परमानंद एक लक्षणमई सुख स्वभाव रूप मोक्ष अवस्था या पर्यायको ही तन्मय होकर जानते हैं परन्तु परद्रव्यको व्यवहार नयसे, तैसें आत्माकी भावना करने वाले पुरुषको उचित है कि वह रागादि विकल्पोंकी उपाधिसे रहित स्वसंवेदन पर्यायको ही सर्व तरहसे , नाने और अनुभव करे तथा बाहरी द्रव्य और पर्यायोंको गौण रूपसे उदासीन रूपसे जाने । भावार्थ-यह गाथा पूर्व गाथाके कथनको स्पष्ट करती है कि जिन मृत और भावी पयर्यायोंको हम वर्तमान कालमें प्रगटता न होनेकी अपेक्षा अविद्यमान या असत कहते हैं वे ही पर्यायें
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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