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________________ wwwanmaanikam श्रीमवचनसार,भाषाटीका। [१४९ सर्व भेदोंके साथ, झलक जाती हैं, तथा वे ऐसी झलकती हैं। मानों वे वर्तमानमें ही मौजूद हैं, इस पर दृष्टांत है कि जैसे कोई चित्रकार अपने मनमें भूतकालमें होगए चौवीस तीर्थकर व बाहुबलि, भरत व' रामचंद्र लक्ष्मण आदिकोंके अनेक जीवनके दृश्य अपने मनमें वर्तमानके समान विचारकर भीतपर उनके चित्र बना देता है इस ही तरह भावी कालमें होनेवाले श्री पद्मनाभ आदि वीर्थकरों व चक्रवर्ती मादिकोंको मनमें विचारकर उनके जीवन के भी दृश्योंको चित्रपर स्पष्ट लिख देता है अथवा जैसे चित्रपटको वर्तमानमें देखनेवाला उन भूत व भावी चित्रोंको चर्तमानके समान प्रत्यक्ष देखता है अथवा जैसे अल्पज्ञानीके विचारमें किसी द्रव्यका विचार करते हुए उसकी भूत और भावी कुछ अवस्थाएं अलक जाती हैं-दृष्टांत-सुवर्णको देखकर उसकी खानमें रहनेवाली भूत अवस्था तथा कंकण कुडल बननेकी भावी भवस्था मालूम हो जाती है, यदि ऐसा ज्ञान न हो तो सुवर्णका निश्चय होकर उससे आभूषण नहीं बन सके, वैद्य रोगीकी भूत और भावी अवस्थाको विचारकर ही औषधि देता है.एक पाचिका स्त्रो अन्नकी भूत मलीन अवस्था तथा भावी भात दाल रोटीकी अवस्थाको मनमें सोचकर ही रसोई तय्यार करती है इत्यादि अनेक दृष्टांत हैं तैसे केवलज्ञानी अपने दिव्यज्ञानमें प्रत्यक्ष रूपसे सर्व द्रव्योंकी सर्व पर्यायोंको वर्तमानके समान स्पष्ट जानते हैं। यद्यपि केवलज्ञानी सर्वको जानते हैं तथापि उन पर ज्ञेयोंकी तरफ सन्मुख नहीं हैं वह मात्र अपने शुद्ध मात्म स्वभावमें ही सन्मुख हैं और उसीके आनंदका स्वाद तन्मयी होकर ले रहे हैं अर्थात्
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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