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________________ RAMAnima १३..] श्रीभवचनसार भापाटीका । पैदा किये प्रकाश करती है, तैसे केवलदर्शन और केवलज्ञान ज्योति परम निश्चलतासे आत्मामें झलकती रहती हैं। उनमें कोई रागद्वेष मोह सम्बन्धी विकार या कोई चाहना या कोई संकल्प विकल्प नहीं उत्पन्न होता है क्योंकि विकारके कारण मोहनीय कर्मका सर्वथा क्षय होगया है वह ज्ञानदर्शन ज्योति अपने आत्माके प्रदेशोंको छोड़कर कहीं जाती नहीं न परद्रव्यको पकड़ती है न उन रूप आप होती है । इस तरह परद्रव्यों से अपनी सत्ताको मिन्न रखती है । वास्तवमें हरएक द्रव्य अपने गुणों के साथ एक रूप है परन्तु अन्य द्रव्य तथा उसके गुणों के साथ एक रूप नहीं है, भिन्न है । एकका द्रव्य, क्षेत्र, काल भाय एक उसीमें है परका द्रव्य क्षेत्र, काल, भाव उसका उस हीमें है । यदि एकका चतुष्टय दूसरेमें चला जाय तो भिन्न २ द्रव्यको सत्ताका ही लोप होजाय, सो इस जगतमें कभी होता नहीं। हरएक दव्य अनादि अनंत है और अपनी सत्ताको भी त्यागता नहीं, न परसत्ताको ग्रहण करता है, न परसत्ता रूप आप परिणमन करता है। यही वस्तुका स्वभाव वस्तुमें एक ही काल अस्तित्व और नास्तित्व स्वभावको सिद्ध करता है, वस्तु अपने द्रव्य क्षेत्र,काल भावसे अन्ति स्वभाव है तथा परके द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावसे नास्तिस्वरूप है अर्थात् वातुमें अपना वस्तुपना तो है परन्तु परका वस्तुपना नहीं है। इस तरह मात्मा पदार्थ और उसके ज्ञानादि गुण अपने ही प्रदेशों में सदा निश्चल रहते हैं। निश्चय केवलज्ञानी भगवान भाप स्वभाव हीका भोग करते हैं, आप सुख गुणका स्वाद लेते हैं, उनको पर द्रव्यों के देखने जाननेकी कोई अभिलाषा नहीं होती है तथापि
SR No.009945
Book TitlePravachan Sara Tika athwa Part 01 Gyantattvadipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages394
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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