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________________ ८४ श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे ___ अर्थ - यह प्रदेश अग्नि वाला है, क्योंकि अग्नि के सद्भाव में ही यह धूम वाला हो सकता है अथवा अग्नि के अभाव में यह धूम वाला हो ही नहीं सकता, इसलिये इसमें अवश्य अग्नि है, इस प्रकार प्रयोग । करना चाहिये । इस दृष्टान्त से यह दृढ़ किया गया कि विद्वानों के लिये उदाहरण वगैरह के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है ॥६॥ संस्कृतार्थ-अग्निमान्य देशः, अग्निमत्त्वे सत्येव धूमवत्त्वोपपत्तेः, अग्निमत्त्वाभावे धूमवत्त्वानुपपत्तेश्च । व्युत्पन्नायैवमेव प्रयोगो विधेयः । दृष्टान्तेनानेन दृढीकृतं यद्व्युत्पन्नायोदाहरणादीनां प्रयोगस्यावश्यकता नो विद्यते ॥१॥ उदाहरण विना व्याप्ति के निश्चयाभाव की आशंका का निराकरण हेतुप्रयोगो हि यथा व्याप्तिग्रहणं विधीयते, सा च तावन्माण व्युत्पन्ौरवधार्यते ॥ ९२॥ अर्थ-जिसकी साध्य के साथ व्याप्ति निश्चित है, ऐसे हेतु के प्रयोग से उदाहरणादिक के बिना ही बुद्धिमान लोग व्याप्ति का निश्चय कर लेते हैं, इसलिये विद्वानों की अपेक्षा उदाहरणादिक के प्रयोग की आवश्यकता नहीं हैं ॥३२॥ संस्कृतार्थ-उदाहरणादिकं विनैव तथोपपत्तिमतो ऽ न्याथानुपपत्तिमतो वा हेतोः प्रयोगेणैव व्युत्पन्ना व्याप्ति गृह णन्ति,प्रतस्तदपेक्षयोदाहरणादिप्रयोगावश्यकता नो विद्यते ॥३२॥ दृष्टान्तादिक के प्रयोग की साध्य की सिद्धि के प्रति विफलता तावता च साध्यसिद्धिः ॥९३ ॥ . अर्थ—उस साध्याविनाभावी हेतु के प्रयोग से ही साध्य की सिद्धि हो जाती है, इसलिये साध्य की सिद्धि में दृष्टान्तादिक की कोई जरूरत नहीं होती ।।६३॥
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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