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________________ न्यायशास्त्र सुबोधटीकायां तृतीयः परिच्छेदः । ७६ अविरुद्धपूर्वचरानुपलब्धि का उदाहरणन भविष्यति मुहूर्तान्ते शकटं कृतिकोदयानुपलब्धोः । __ अर्थ-एक मुहूर्त के बाद रोहिणी का उदय नहीं होगा, क्योंकि अभी कृतिका का भी उदय नहीं हुआ है। यहां शकटोदय के अविरुद्ध पूर्वचर कृतिका के उदय का अभाव एक मुहूर्त के बाद रोहिणी के उदय के अभाव को सिद्ध करता है, इसलिये यह हेतु अविरुद्धपूर्वचरानुपलब्धिहेतु हुआ ॥७९॥ संस्कृतार्थ न भविष्यति मुहूर्तान्ते शकटं ; कृतिकोदयानुपलब्धः । अत्र शकटोदयादविरुद्धस्य पूर्वचरस्य कृतिकोदयस्याभावो मुहूर्तान्ते शकटोदयाभावं साधयति । अतोऽयं कृतिकोदयानुपलब्धित्वहेतुः अविरुद्धपूर्वचरानुपलब्धिहेतु र्जातः । अविरुद्धोत्तरचरानुपलब्धि का उदाहरणनोदगाद भरणिः महाप्राक तत एव ॥८॥ अर्थ---एक मुहूर्त पहले भरणि का उदय नहीं हो चुका है, क्योंकि अभी कृतिका का भी उदय नहीं हुआ है। यहां भरणि के उदय के अविरुद्ध उत्तरचर कृतिका के उदय का प्रभाव, भरणि के उदय की भूतता के अभाव को सिद्ध करता है, इसलिये यह हेतु अविरुद्धोत्तरचरोपलब्धिहेतु हुभा ॥८॥ ___संस्कृतार्थ- नोदगाद् भरणिः मुहूर्तात्प्राक् तत एव । अत्र भरण्युदयादविरुद्धोत्तरचरस्य कृतिकोदयस्याभावो भरण्युदयभूतताऽभावं साधयति । अतोऽयं हेतुः 'अविरुद्धोत्तरचरोपलब्धिहेतुः जातः ॥२०॥ अविरुद्धसहचरोपलब्धि का उदाहरणनास्त्यत्र समतुलायामुन्नामो नामानुपलब्धोः ॥११॥ अर्थ- इस तराजू में ऊँचापन नहीं है, क्योंकि नीचेपन का प्रभाव है। यहां ऊँचेपन का अविरुद्ध सहचर नीचेपन का प्रभाव ऊँचेपन के
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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