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________________ न्यायशास्त्रे सुबोधटीकायां तृतीयः परिच्छेदः । ५७ इस कुयुक्ति का इस सूत्र में खण्डन किया गया है। सूत्र नं० ३५ शौर ३७ द्वारा श्रविनाभाव के निश्चय के हेतु तथा व्याप्ति के स्मरण के हेतु उदाहरण की आवश्यकता बतलाने का निषेध ( खण्डन ) किया गया है ॥ ३४ ॥ साध्य के साथ हेतु का अभिनाभाव निश्चित कराने के लिये उदाहरण की आवश्यकताप्रदर्शन का खण्डन - तदविनाभानचयाর্থ वा विवसे बाधकमानबलादेव ः ॥ ३५ ॥ तत्सिद्धेः - अर्थ – साध्य के साथ हेतु का प्रविनाभाव निश्चित करने के लिये भी उदाहरण श्रावश्यक नहीं है । क्योंकि विपक्ष में बाधक प्रमाण मिलने से ही साध्य के साथ हेतु का प्रबिनाभाव निश्चित हो जाता है । अर्थात् यह निश्चित हो जाता है कि-अमुक साधन प्रभुक साध्य के बिना नहीं हो सकता ॥ ३५ ॥ संस्कृतार्थ – साध्येन सह हेतोरविनाभावनिश्चयार्थ मुदाहरणप्रयोग: श्रावश्यक इति चेन्न विपक्षे बाधकप्रमाणबलादेव तदविनाभाथनिश्चयसिद्धेः ॥ ३५ ॥ विशेषार्थ -- किसी का कहना है कि उदाहरण के प्रयोग बिना साध्य के साथ हेतु का अविनाभाव ही निश्चित नहीं हो सकता, इसलिये उदाहरण का प्रयोग आवश्यक है। इस सूत्र के द्वारा इसी मान्यता का लण्डन किया गया है ॥ ३५ ॥ साध्य के सजातीय धर्म वाले धर्मी को सपक्ष कहते हैं। श्रीर साध्य से विजातीय धर्म वाले धर्मो को विपक्ष कहते हैं । जैसे पर्वत में अग्नि सिद्ध करते समय रसोईघर सपक्ष होता है और तालाब विपक्ष होता है, क्योंकि इसमें साध्य (अग्नि) से विवातीय धर्म (जल) होता है ।
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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