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________________ ५६ श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखेहेतु से तीन प्रकार स्वभावहेतु, कार्यहेतु और अनुपलब्धिहेतु लेना । अथवा पक्षसत्त्व सपक्षसत्त्व और विपक्षव्यावृत्ति लेना। जिस प्रकार बिना कहे हेतु का समर्थन नहीं हो सकता, उसी प्रकार पक्ष के प्रयोग विना साध्य के प्राधार का भी निश्चय नहीं हो सकता, इसलिये पक्ष का प्रयोग करना आवश्यक है ॥ ३२ ॥ अनुमानाङ्गनिर्णयः अनुमान के अंगों का निर्णय एतद्धयमेवानुमानाग नोदाहरणम ॥ ३३ ॥ अर्थ-पक्ष और हेतु ये दो ही अनुमान के अङ्ग ( अवयव या कारण ) हैं, उदाहरण नहीं। संस्कृतार्थ-पक्षो, हेतुश्चेति द्वितयमेवानुमानानं नोदाहरणादिकम् ॥ ३३ ॥ विशेषार्थ- सांख्य-पक्ष, हेतु और उदाहरण, मीमांसक-प्रतिज्ञा,हेतु, उदाहरण और उपनय तथा नैयायिक-प्रतिज्ञा, हेतु उदाहरण, उपनय और निगमन । इस प्रकार क्रम से अनुमान के ३, ४ वा ५ अवयव मानते हैं । इस सूत्र द्वारा उनकी मान्यता का खण्डन किया गया है ।। ३३ ।। उदाहरण को अनुमान का अंग न होने में कारणলছি নানিয়া নয় অথবী আদা। अर्थ-उदाहरण, साध्य के ज्ञान में कारण नहीं है, क्योंकि साध्य के ज्ञान में निर्दोष ( साध्य का अविनाभावी ) हेतु ही कारण होता है ।। ३४ ॥ संस्कृतार्थ-साध्यप्रज्ञापनार्थम् उदाहरणप्रयोगः समीचीन इति चेन्न साध्याविनाभावित्वेन निश्चितस्य हेतोरेव साध्यज्ञानजनकत्वसामर्थ्यात् ॥ ३४ ॥ विशेषार्थ-किसी का कहना है कि उदाहरण के बिना साध्य का शान नहीं हो सकता, इसलिये उदाहरण का प्रयोग करना चाहिये।
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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