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________________ श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे अवधूमहेतु का अग्नि साध्य के साथ अविनाभाव इस प्रकार सिद्ध होता है कि तालाब में अग्नि के अभाव में धूम नहीं पाया जाता है यदि पाया जाय तो घूम और अग्नि के कार्यकारणभाव का भङ्गरूप बाधक प्रमाण उपस्थित होगा । विपक्ष में ऐसे ही बाधक प्रमाण मिलते हैं जिनसे साध्य के साथ साधन का अविनाभाव निर्णीत हो जाता है। इसलिये उदाहरण के प्रयोग की आवश्यकता नहीं ॥ ३५ ॥ उदाहरण के अनुमानाङ्ग न होने का प्रकारान्तर से खण्डन উইকি অ লিহাল জাব্বাল হু ভ্যানিমাণ নছিप्रतिपत्तावनस्थानं स्याद दृष्टान्तान्तरापेक्षाणात् ॥ ३६ ॥ अर्थ-किसी खास व्यक्तिरूप ( महानस या पर्वतरूप ) तो उदाहरण होता है। और सामान्यरूप ( सम्पूर्ण देश में, सम्पूर्ण काल में, तथा सम्पूर्ण आकारों में रहने वाले साध्य और साधन ग्रहण करने वाली ) व्याप्ति होती है । ऐसी हालत में व्यक्तिरूप दृष्टान्त, सामान्यरूप व्याप्ति को कैसे ग्रहण कर सकता है ? और यदि उस उदाहरण में रहने वाले साध्य वा साधन के विषय में विवाद खड़ा हो जाय तो दृष्टान्त के लिये भी दृष्टान्त की आवश्यकता होगी, जिससे अनवस्था दोष प्रा जावेगा ।। ३६ ॥ संस्कृतार्थ- दृष्टान्तो विशेषरूपः, व्याप्तिश्च सामान्यरूपा भवति । अतः उदाहरणेऽपि सामान्यव्याप्तिविवादे सति तन्निश्चयार्थम् उदाहरणान्तरापेक्षणात् अनवस्थादोषप्रसङ्गो भवेत् ।। ३६ ।। विशेषार्थ-अप्रामाणिक अनन्तपदार्थों की कल्पना में विश्रान्ति नहीं होना अनवस्या दोष कहलाता है। जिसप्रकार एक दृष्टान्त की सच्चाई के लिये दूसरे दृष्टान्त की आवश्यकता हुई, उसी प्रकार उसकी सचाई के लिये तीसरे की और तीसरे की सचाई के लिये चौथे की
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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