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________________ न्यायशास्त्रे सुबोधटीकायां तृतीयः परिच्छेदः । को देखकर वृक्षसामान्य की संज्ञा को याद कर जानना कि 'यह वृक्ष है' यह सामान्य प्रत्यभिज्ञान का दृष्टान्त है। प्रमेयरत्नमाला ग्रन्थ से और भी दृष्टान्त समश लेना चाहिये ॥ ६॥ तर्कप्रमाणकारणलक्षणे, तर्कप्रमाण के कारण और लक्षणउपलम्भानुपलन्भनिमितं व्याप्तिज्ञानमूहः ॥ ७॥ अर्थ–साध्य और साधन का निश्चय और अनिश्चय है कारण जिसमें ऐसे व्याप्ति के ज्ञान को तर्क कहते हैं। ७ ।। संस्कृतार्थ - उपलम्भश्चानुपम्भश्च उपलम्भानुपलम्भौ निश्चयानिश्चयावित्यर्थः, तौ निमित्तं यस्य तत् उपलम्भानुपलम्भनिमित्तम् । तथा च साध्यसाधनविषयिकनिश्चयानिश्चयहेतुकत्वे सति व्याप्तिज्ञानत्वं तर्कत्वम् ॥ ७ ॥ विशेषार्थ- साध्य और साधन का. निश्चय और अनिश्चय क्षयोपशम के अनुकूल होता है ॥ ७ ॥ व्याप्तिज्ञानप्रवृत्तिप्रकारः, व्याप्तिज्ञान की प्रवृत्ति का प्रकार. इदमास्मिन्सत्यव भवत्यसति तु न भवत्येव ॥८॥ यथाऽग्नावेव धूमस्तदभावे न भवत्येवेति च ॥९॥ अर्थ- यह साधनरूप वस्तु, इस साध्यरूप वस्तु के होने पर ही होती है और साध्यरूप वस्तु के नहीं होनेपर साधनरूप वस्तु नहीं होती। जैसे कि अग्नि के होने पर ही धूम होता है और अग्नि के नहीं होने पर धूम नहीं होता ।। ८ ।।६॥ - संस्कृतार्थ- स च तर्क: इदमस्मिन् सत्येव भवति असति तु न भवति इत्येवपः प्रवर्तते, यथा बही सत्येव धूमः उपलभ्यते, बह न्यभावे तु नैवोपलभ्यते ॥८॥६॥
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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