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________________ ४६ श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखेअनुमानकारणस्वरूपे, अनुमान का कारण और स्वरूप साधनात् साध्यविज्ञानमानुमानम् ॥ १०॥ . अर्थ-साधन से होने वाले साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं ॥१०॥ संस्कृतार्थ- साधनाद् धूमादेः लिङ्गात्साध्येऽग्न्यादौ लिङ्गिनि यद्विज्ञानं जायते तदनुमान, तस्यैवाग्न्याचव्युत्पत्तिविच्छित्तिकरणत्वात् । साधनाज्जायमानं साध्य विज्ञानमेवानुमानमिति भावः ॥ १० ॥ हेतो लक्षणम् , हेतु (साधन) का लक्षण-- साध्याविनामावित्वेन निश्चितो हेतुः ॥ ११॥ अर्थ-जिसका साध्य के साथ अविनाभाव निश्चित होता है, अर्थात् जो साध्य के बिना नहीं हो सकता उसे हेतु कहते हैं ॥ ११ ॥ संस्कृतार्थ-निश्चितसाध्यान्यथानुपपत्तिकं साधनम् । यस्य साध्याभावासम्भवनियमरूपा व्याप्त्य विनाभावाद्यपरपर्याया साध्यान्यथानुपत्तिस्तकाख्येन प्रमाणेन निर्णीता तत्साधनमित्यर्थः ॥ ११ ॥ अविनाभावलक्षम् , अविनाभाव का लक्षणसहभमभव नियमो ऽ विनाभावः ॥ १२ ॥ अर्थ--साध्य और साधन का एक साथ एक समय होने का नियम सहभावनियम अविनाभाव कहलाता है और काल के भेद से साध्य और साधन का क्रम से होने का नियम क्रमभाव नियम अभिनाभाव कहलाता है ॥ १२॥ संस्कृतार्थ-साध्यसाधनयोः साहचर्यनियमः, क्रमवतित्वनियमो वा अविनाभाद: प्रोच्यते । सहभावनियमः, क्रममावनियमश्चेति द्वौ तस्याविनाभावस्य भेदो स्तः ॥ १२ ॥
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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