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________________ ४४ श्रीमाणिक्यनन्दिस्वामिविरचिते परीक्षामुखे थी उसका स्मरण कर यह उससे विलक्षण है, ऐसा जानना वैलक्षज्य प्रत्यभिज्ञान है। और पहिले देखा था उसके वर्तमान में प्रतियोगी (जिससे अवश्य जोड़ मिल जाय) अन्य पदार्थ को देखकर 'यह उसका प्रतियोगी. हैं', ऐसा जानना प्रातियौगिक प्रत्यभिज्ञान है । इसी प्रकार अन्य दृष्टान्त भी जानना ॥५॥ प्रत्यभिज्ञानदृष्टान्ताः, प्रत्यभिज्ञान के दृष्टान्त यथा स-एवायं देवदत्तः, गोसवृशो गवयः, गोबिलक्षाणो महिषः, इदमस्माइरम, वृक्षोऽयमित्यादि ॥ ६॥ अर्थ-जैसे--- १ यह वही देवदत्त है। २-यह रोझ उस गी के . समान है । ३- यह भैसा उस गौ से विलक्षण (भिन्न) ही है। ४- यह प्रदेश उस प्रदेश से दूर है, यह वही वृक्ष है, इत्यादि । ये क्रम से एकत्वारि प्रत्यभिज्ञानों के दृष्टान्त हैं ।। ६ ।। संस्कृतार्थ-एकत्वप्रत्यभिज्ञानस्य स एवायं देवदत्तः, सादृश्यप्रत्यभिज्ञानस्य गोसदृशो गवयः। वैलक्षध्यप्रत्यभिज्ञानस्य गोविलक्षणो महिषः, प्रातियौगिकात्यभिज्ञानस्य इदमस्माइ रमिति - क्रमशः दृष्टान्ता विजेयाः (प्रत्येतव्याः) ॥ ६ ॥ विशेषार्ण-जैसे किसी ने किसी पुरुष को देखकर जाना कि 'यह वही पुरुष है जिसे पहिले देखा था' यह एकत्वात्यभिज्ञान का दृष्टान्त है। किसी ने बन में रोझ को देखकर जाना कि जो गाय पहिले देखी.पी यह रोझ उसके समान है, यह सादृश्य प्रत्यभिज्ञान का उदाहरण है। भैंसा को देखकर यह जाना कि जो गाय पहिले देखी थी यह भैसा उखाणे बिला है, यह लक्षष्य प्रत्यभिज्ञान का दृष्टान्त है। किसी वस्तु को निस्ट देख कर अन्य किसी को इस प्रकार जाना कि 'यह इसके दूर है, যুৎ বিক্রেীক্ষিক জিয়া সুচ ভচ্ছা ছি ! ডিগ্রী যু
SR No.009944
Book TitlePariksha Mukha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandiswami, Mohanlal Shastri
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year2005
Total Pages136
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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