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________________ ८६ पञ्चतन्त्र आग में वह कौन मूर्ख मनुष्य है, जो अपनी इच्छा से घुसेगा ? " मतवाले हाथियों के वक्षस्थल को फाड़ने की थकान से थका हुआ, यम की मूर्ति के समान सिंह को यमलोक के दर्शन की इच्छा रख कर कौन जगा सकता है ? "कौन निडर यम के घर जाकर स्वयं यम से कहता है 'अगर तुझ में कुछ ताकत है तो ले मेरी जान।' कुहरे से मिली हवा ठंडे काल में बहती है । गुण-दोष जानने वाले पुरुष को ठंडे जल से कौन ठंडा कर सकता है ? इसलिए निःशंक होकर तू यहाँ अंडे दे । कहा भी है- जो आदमी हार मानकर अपनी जगह छोड़ देता है, अगर उससे माता पुत्रवती कहलाये तो फिर बाँझ किससे कहलाये ? " यह सुनकर समुद्र सोचने लगा, “अरे देखो तो इस कीड़े की तरह छोटे पक्षी का गर्व ! अथवा ठीक ही कहा है कि "टिटिहरा आकाश टूटने के डर से अपने पैर ऊपर करके बैठता है । अपने मन में ख्याली घमंड किसे नहीं होता ? इसलिए मुझे कुतूहल से ही उसकी ताकत आजमानी चाहिए । अगर मैं इसके अंडे बहा ले जाऊँ तो यह क्या कर सकता है ?" समुद्र ऐसा सोच-विचार करने लगा । अंडे देने के बाद खाना इकट्ठा करने जब टिटिहरी का जोड़ा बाहर गया हुआ था, तब समुद्र ने लहर के जरिये उसके अंडे खींच लिए । टिटिहरी ने आने पर अपने अंडे देने की जगह को खाली पाकर रोते हुए टिटिहरे से कहा, "अरे मूर्ख ! मैंने तुझसे कहा था कि समुद्र के ज्वार से अंडे नष्ट हो जायँगे, इसलिए हमें दूर जाना चाहिए, पर मूर्खता से अहंकार के वश होकर तूने मेरा कहना न माना । अथवा कहा है कि " इस लोक में हितैषी मित्रों की जो बात नहीं मानता वह लकड़ी के ऊपर से गिरे हुए कछुए की तरह नष्ट हो जाता है ।" टिटिहरे ने कहा, "यह कैसे ?” उसने कहा
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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