SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मित्र-भेद عاح काठ से गिरे हुए कछुए की कहानी ___ "किसी तालाब में कम्बुग्रीव नामक कछुवा रहता था । उसके संकट और विकट नाम के परम-स्नेही दो मित्र हंस नित्य तालाब के किनारे आकर उसके साथ अनेक देव महर्षियों की कथा कहकर सायंकाल अपने घोंसलों को चले जाते थे। कुछ दिन बीतने पर बरसात न होने से तालाब धीरे-धीरे सूख गए । कछुए के दुख से दुखी दोनों हंसों ने कहा, “अरे मित्र ! इस तालाब में केवल कीचड़ बच गया है। तुम्हारा क्या होगा , यह सोचकर हमारा हृदय व्याकुल हो रहा है ।" यह सुनकर कम्बुग्रीव ने कहा, “अरे, पानी के बिना अब मेरा जीवन टिक नहीं रहा है। इसलिए कोई उपाय सोचो । कहा भी है "दुख के समय भी धीरज नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि धैर्य से कदाचित् मनुष्य को चाल मिलती है; जैसे कि समुद्र में जहाज टूट जाने पर उस पर सफर करने वाले केवल तैरना ही चाहते हैं। और भी "मनु का यह कहना है कि आफतें पैदा होने पर बुद्धिमान मनुष्य सदा मित्रों और बंधुओं के लिए मेहनत करता है। इसलिए कोई मजबूत रस्सी अथवा छोटा काठ लाओ और भरे पानी वाले किसी तालाब की तलाश करो। मैं अपने दांतों से लकड़ी का बीच का हिस्सा पकड़ लूंगा और तुम दोनों उसके दोनों छोर पकड़कर मुझे उस तालाब में ले चलोगे ।" उन दोनों ने कहा, "हम यही करेंगे, पर कृपा करके आप चुप रहियेगा, नहीं तो आप काठ से नीचे गिर जायंगे।" इस तरह का इन्तजाम होने के बाद आकाश में उड़ते हुए कम्बुग्रीव ने नीचे कोई शहर देखा और वहां के नागरिक उसे इस प्रकार ले जाते हुए देखकर आपस में विस्मय से कहने लगे, "अरे ! ये पक्षी कोई चक्राकार वस्तु लिये जा रहे हैं, देखो, दखो।' इस प्रकार उनका कोलाहल सुनकर कम्बुग्रीव ने कहा, "अरे ! यह कैसा शोरगुल है।"
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy