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________________ मित्र-भेद 땠 से , अच्छे तीर्थों और आश्रमों में रहने से , होम और नियम से तथा चन्द्रायण आदि व्रत करने से जो फल प्राप्त होता है वह फल युद्ध में मरने वाले वीरों को उसी क्षण मिल जाता है।" यह सुनकर दमनक सोचने लगा , 'यह दुष्ट तो युद्ध के लिए तैयार मालूम होता है । कदाचित वह अपने तीखे सींगों से स्वामी पर वार करेगा तो बड़ा अनर्थ होगा। तो फिर एक बार मैं इसे समझाऊँ जिससे वह देश के बाहर चला जाय, फिर दमनक बोला ," मित्र ! तूने ठीक कहा, लेकिन स्वामी और सेवक की लड़ाई कैसी? कहा है कि । "बलवान शत्रु को देखकर कमजोर को छिप जाना चाहिए और बलवानों को निर्बल शत्रु को देखकर शरद् ऋतु के चन्द्रमा की तरह प्रकट हो जाना चाहिए । और भी "शत्रु का बल जाने बिना जो शत्रुता करता है वह, जैसे समुद्र टिटि___ हरी से हार गया, उसी प्रकार हार जाता है।" संजीवक ने कहा , “यह कैसे ?" दमनक कहने लगा-- टिटिहरी और समुद्र की कहानी "किसी देश में समुद्र के किनारे टिटिहरी का एक जोड़ा रहता था। समयांतर में ऋतुमती होकर मादा टिटिहरी ने गर्भ धारण किया । अपने प्रसव काल को आया जानकर मादा ने नर से कहा, "मेरे प्यारे ! मेरा प्रसव काल आ गया है, इसलिए आप किसी उपद्रवरहित स्थान की खोज कीजिये, जहाँ मैं अंडे दे सकूँ।"नर ने कहा,“भद्रे ! यह समुद्र प्रदेश बहुत सुन्दर है, यहीं पर तुम अंडे दो।"मादा ने कहा, "यहां पूनों के दिन ज्वार आती है, जो मतवाले हाथी को भी खींच ले जाती है, इसलिए यहाँ से दूर कोई जगह खोजिये।" यह सुनकर नर ने हँसकर कहा , “तेरा कहना ठीक नहीं है। मेरे बच्चे को नुकसान पहुँचाने की समुद्र की क्या ताकत है ? कहा है कि “पक्षियों का रास्ता रोकने वाली , डरावनी और धुआँरहित
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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