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________________ मित्र-भेद "स्वामी के लिए अपनी जान देने वाले सेवकों को जो गति मिलती है, वह गति यज्ञ करने वालों को और योगियों को भी नहीं मिलती।" • वह यह कह ही रहा था कि सियार और चीते ने उसकी दोनों कोखें चीर डालीं, जिससे वह मर गया। बाद में उन सब छोटे पंडितों ने उसे खा डाला । इसलिए मैं कहता हूं कि "कपट से जीविका चलाने वाले छोटे पंडित जैसे ऊँट के बारे में कौए वगैरह ने किया वैसा कार्य अथवा अकार्य करते हैं। इसलिए हे भद्र ! मैं मानता हूँ यह राजा छोटे साथियों वाला है। कहा "गीधों से घिरे कन्वहंस के समान आचरण करते हुए अशुद्ध मंत्रिओं वाले राज्य में जनता सुख नहीं पाती। उसी प्रकार "राजा अगर गीध के समान भी हो पर हंस-जैसे सभासदों वाला हो तो वह सेवा करने योग्य है , परन्तु उसके हंस-जैसे होते हुए भी उस के सभासद गीध-जैसे हों तो वह छोड़ देने लायक है। यह निश्चित है कि किसी बदमाश ने पिंगलक को मुझसे गुस्सा करवा दिया है, जिससे वह ऐसा कहता है । अथवा कहा भी है-- "कोमल जल के थपकों से पहाड़ और जमीन घिस जाती है। फिर शिकायत करने वालों की शिकायत से , कोमल चित्त वाले मनुष्यों का क्या कहना है ? "कर्ण विष से (खोटे उपदेश सुनने से) टूटा हुआ मूर्ख कौनसा बचपन नहीं करता ? वह जैन साधु बनता है और कापालिक बनकर मनुष्य की खोपड़ी से मदिरा पीता है। अथवा ठीक ही कहा है कि "पैर से मारे जाने पर भी अथवा मजबूत डंडे से पीटे जाने पर भी साँप जिसे डसता है उसे मार डालता है, पर चुगलीखोर का धर्म
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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