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________________ मित्र-भेद की आज्ञा से चलता है। "जमीन पर सोना , ब्रह्मचर्य, पतलापन और हल्का खाना, ये वस्तुएं सेवक और यति के लिए समान हैं । "पर इन दोनों के बीच में फर्क पाप और धन का है (अर्थात् सेवक के लिए ये वस्तुएं पाप-स्वरूप हैं और यति के लिए धर्मस्वरूप)। "ठंड, धूप , इत्यादि जिन तकलीफों को सेवक धन के लिए सहता है, अगर यह कष्ट वह थोड़ी मात्रा में भी सहे तो उसे मोक्ष मिल सकता है। "मुलायम , सुडौल, मीठा और ललचौवा लड्डू भी अगर सेवा से मिला हो तो उसकी क्या खूबी !" संजीवक ने कहा , “तू कहना क्या चाहता है ?" दमनक ने कहा, "स्वामी का भेद बतलाना मंत्रियों के लिए ठीक नहीं । कहा है कि "मंत्रिपद पर प्रतिष्ठित जो मनुष्य स्वामी का भेद खोलता है, वह राजा का काम खराब करके स्वयं नरक में पड़ता है। नारद ने कहा है कि 'जो मंत्री अपने राजा का भेद खोलता है उसे बिना हथियार के ही मार डालना चाहिए।' फिर भी मैंने तुम्हारे स्नेह-बंधन में बँधकर भेद खोल दिया है, क्योंकि तुम मेरी ही बात से राजकुल में घुसे हो और विश्वसनीय हुए हो । कहा भी है-- "विश्वास करने से जो आदमी किसी तरह से मारा जाता है उसकी हत्या उस विश्वास से ही पैदा होती है।' (अर्थात् जिस मनुष्य का विश्वास किया गया हो उसे ही वह पाप लगता है) ऐसा मनु ने कहा है। पिंगलक की तुम्हारे ऊपर बुरी नीयत है। आज उसने मुझसे अकेले में कहा था कि सबेरे संजीवक को मारकर मैं सब पशुओं को तृप्त करूँगा। मैंने उससे कहा, "स्वामी, मित्र-द्रोह करके अपनी रोजी चलानी, यह ठीक
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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