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________________ पञ्चतन्त्र आपकी तरफ कड़ी निगाह से देखेगा। यह जानकर जैसा उचित हो आप करिएगा । " ی यह कहकर दमनक संजीवक के पास पहुंचा और उसे प्रणाम करके बैठ गया। संजीवक ने भी उसे अनमने और धीरे-धीरे आते हुए देखकर कहा, " मित्र ! तुम्हारा स्वागत है । बहुत दिनों के बाद तुम दिखलाई दिए । तुम कुशल से तो हो ? अगर तुम कहो तो जो न देने लायक वस्तु भी होगी उसे भी तुम्हें मैं अपने घर आने की वजह से दूंगा । कहा भी है. "जिनके घर काम के लिए मित्रजन आते हैं वे इस पृथ्वी में धन्य हैं, बुद्धिमान हैं और प्रशंसा के पात्र हैं।" -- दमनक ने कहा, "अरे, नौकरों की कुशल ही क्या ? " जो राजा के नौकर हैं उनकी दौलत पराधीन होती है, उनका मन हमेशा चिंतातुर होता है और उनको अपने जीने के बारे में भी विश्वास नहीं होता । और भी " धन चाहने वाले सेवकों ने जो किया है उसे तो देखो । शरीर की जो स्वतंत्रता है वह भी इन मूर्खों ने गँवा दी है । "पहले तो पैदा होना ही बड़ा तकलीफदेह है, फिर उसमें सदा की गरीबी भी दुःख देने वाली है । और उसमें भी सेवा की रोजी, यह भी दु:खकारक है । अहो ! संसार में यह दुःख की परम्परा है । "गरीब, रोगी, मूर्ख, प्रवासी और नित्य सेवा करने वाला, ये पांचों महाभारत में जीते हुए भी मरे कहे गए हैं । "वह अपने मन से भोजन नहीं कर सकता है, चिंता के कारण उसकी नींद उड़ गई है, ऐसे को उठाने की जरूरत नहीं पड़ती, वह बेधड़क होकर बातें नहीं कर सकता; ऐसा सेवक भी संसार में जीता है । "" सेवा कुत्तों की वृत्ति है, जिसने यह कहा है उसने झूठ कहा क्योंकि कुत्ता अपनी तबीयत से घूमता है जब कि सेवक दूसरे
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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