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________________ मित्र-भेद ६१ कर कंचुकी और महल के रखवाले हाथ में डंडे लेकर जल्दी से उसके पीछे दौड़े । कौई साँप के खोल में सिकड़ी डालकर दूर उड़ गई। इतने में राजकर्मचारियों ने पेड़ के ऊपर चढ़कर खोखले में देखा तो एक काला नाग अपना फन फैलाकर बैठा था । उसे डंडे की चोटों से मारकर सोने की सिकड़ी लेकर वे अपने गंतव्य स्थान पर चले गए । कौओं का जोड़ा भी उसके बाद सुख से रहने लगा । इसलिए मैं कहता हूँ कि तरकीब से जो काम हो सकता है वह बहादुरी से नहीं हो सकता । कौई ने सोने की सिकड़ी से काले नाग को मरवाया । " इसलिए बुद्धिमानों के लिए इस दुनिया में कोई चीज असाध्य नहीं है। कहा है " जिसके पास बुद्धि है उसीके पास बल है । बुद्धिहीन को बल कहाँ से हो सकता है ? वन में मतवाले सिंह का नाश खरगोश ने किया ।" करटक ने कहा, "यह किस तरह ?" दमनक कहने लगा- सिंह और खरगोश की कथा " किसी वन में भासुरक नाम का सिंह रहता था । बल की अतियता से वह प्रतिदिन हिरनों खरगोशों इत्यादि को मारने में नहीं चूकता था। एक दिन उस बन के हिरन, सूअर, भैंसे, खरगोश इत्यादि सब पशुओं ने इकट्ठे होकर सिंह के पास जाकर कहा, "स्वामी ! हम सब जानवरों को रोज रोज मारने से क्या लाभ ? आपकी तृप्ति तो एक ही प्राणी से हो जाती है । इसलिए हमारे साथ आप एक ठहराव कीजिए । आज से यहीं बैठे-बैठे अपने पारी से हर जाति के पशु प्रतिदिन आपके खाने के लिए आ जायंगे । ऐसा करने से बिना किसी तकलीफ के आपकी रोजी चलती रहेगी और हमारा भी सर्वनाश नहीं होगा । इसलिए आप राज-धर्म का पालन कीजिए । कहा भी है- "जो राजा अपने बल के अनुसार दवा की तरह धीरे-धीरे राज्य का
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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