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________________ ६२ पञ्चतन्त्र भोग करता है वह खूब बलवान होता है. " सूखी अरणी भी मंत्रयुक्त विधि से मथी जाय तो उसमें से आग निकलती है, उसी तरह जमीन रूखी होने पर भी राज्य मंत्र से उसका मंथन किया जाय तो वह फल देने लगती है । "प्रजा पालन, यह प्रशंसनीय काम स्वर्ग देने वाला है और खजाना बढ़ाने वाला होता है । उसी तरह प्रजा -पीड़न धन का नाश करने वाला तथा पाप और अपयश देने वाला होता है । “ग्वालों की तरह पृथ्वी-पालन करनेवाले राजाओं को, प्रजा-रूपी गाय का पालन-पोषण करके उसके धन-रूपी दूध को धीरे-धीरे दुहना चाहिए और उन्हें न्याय की वृत्ति सदा बरतनी चाहिए । " जो राजा मोहवश होकर प्रजा को बकरी की तरह मारता है, उसकी एक ही बार तृप्ति होती है, दूसरी बार नहीं । " जिस तरह माली अंकुरों की सेवा करता है, उसी प्रकार फल. चाहने वाले राजा को दान, मान, पानी आदि से प्रयत्नपूर्वक प्रजा का पालन करना चाहिए । "राजा-रूपी दीपक अपने अन्दर के उज्ज्वल गुणों ( गुण, बत्ती ) द्वारा प्रजा के पास धन-रूपी तेल ग्रहण करता है । पर यह बात किसी के नजर नहीं आती ! " जिस तरह गाय पहले पाली जाती है तथा समय आने पर दुही जाती है तथा फूल फल देने वाली लता जैसे सींची जाती है और यथासमय चुनी जाती है, उसी प्रकार प्रजा के बारे में भी समझना चाहिए । "यत्नपूर्वक रक्षित सूक्ष्म बीजांकुर भी जैसे यथासमय फल देता है, उसी प्रकार सुरक्षित प्रजा भी फल देती है । "राजा के पास सोना, अनाज तथा रत्न, तरह-तरह की सवारियाँ तथा और भी जो कोई वस्तु होती है, वह प्रजा से मिली होती है । "जा के ऊपर अनग्रह करने वाले राजे बढते हैं और प्रजा को
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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