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________________ पञ्चतन्त्र सोचा,"मछली के माँस खाने से मैं बीमार हो गया हूँ इसलिए इस केकड़े को पकवान की तरह काम में लाऊँगा।" यह सोचकर उस केकड़े को पीठपर चढ़ाकर वह उस जानमारू चट्टान की ओर चल पड़ा। केकड़े ने दूरसे ही चट्टान पर लगे हुए हड्डियों का पहाड़ देखकर और उन्हें मछलियों की हड्डियां जानकर उससे पूछा, “मामा ! वह तालाब कितनी दूर है । मेरे बोझ से तुम बहुत थक गए हो, इसलिए बताओ।" यह भी मूर्ख जलचर है, यह मानकर तथा जमीन पर इसका प्रभाव नहीं चल सकता, यह जानकर वह हंसकर बोला, “अरे केकड़े ! दूसरा तालाब नहीं है । यह तो मेरी रोजी है । इसलिए अपने इष्ट-देवता का स्मरण कर । तुझे भी मैं इस चट्टान पर पटककर खा जाऊंगा।" बगला यह कह ही रहा था कि इतने में केकड़े ने अपने दोनों आरों से कमल-ककड़े की तरह सफेद उसकी मुलायम गरदन पकड़ ली और वह मर गया। बाद में वह केकड़ा बगले की गरदन लेकर धीरे-धीरे उस तालाब पर आ पहुँचा। सब जलचरों ने उससे पूछा, "अरे केकड़े! तू कैसे लौट आया ? मामा क्यों नहीं लौटे ? तू जवाब देने में देर क्यों करता है ? हम सारे उत्सुकतापूर्वक तेरी राह जोहते बैठे हैं।" इस तरह उनके कहने पर केकड़े ने भी हंसकर कहा, "अरे मूर्यो! वह झूठा सब जलचरों को धोखा देकर यहाँ से थोड़ी दूर चट्टान पर पटककर खा गया। मेरी जिंदगी बाकी थी इसलिए मैं उस दगाबाज का मतलब जानकर उसकी यह गरदन लाया हूँ । अब तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं रही। आज से सब जलचरों का कल्याण होगा।" ___ इससे मैं कहता हूँ कि बड़ी, मझली और छोटी बहुतसी मछलियों को खाने के बाद बड़े लालच से केकड़े को पकड़ने की वजह से एक बगला मारा गया। यह सुनने के बाद कौआ और कौंई अपनी इच्छानुसार उड़ चले । उड़ते-उड़ते कोई एक तालाब के पास पहुँचकर देखती है कि किसी राजा की रानियां तट पर सोने की सिकड़ी, मोती के हार और गहने-कपड़े रखकर तालाब में जल-क्रीड़ा कर रही हैं। वह कौई सोने की एक सिकड़ी लेकर अपने घोंसले की तरफ उड़ी। उसे सिकड़ी ले जाते देख
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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