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________________ पञ्चतंत्र २४ ही होते हैं । कहा भी है- " घोड़ा, हथियार, शास्त्र, वीणा, वाणी, पुरुष और स्त्री यह सब खास आदमियों को पाने पर लायक अथवा नालायक 1 बनते हैं । इसलिए जब तक मैं इस शब्द का स्वरूप जानकर न लौटू तब तक आप धीरज के साथ यहीं हमारी राह देखिए । इसके बाद हम जैसा होगा करेंगे ।" पिंगलक ने कहा, "क्या वहां जाने की हिम्मत रखता है ?" दमनक ने कहा, “स्वामी की आज्ञा से अच्छे सेवक के लिए क्या कोई भी काम न करने जैसा भी होता है ? कहा भी है- "स्वामी की आज्ञा होने के बाद अच्छे सेवक को कहीं भी भय नहीं लगता, वह सर्प के मुख में और कठिनता से पार करने क योग्य समुद्र में भी घुस जाता है । और भी " स्वामी की आज्ञा मिलने पर जो सेवक टेढ़े सीधे का विचार करता है, उसे समृद्धि चाहने वाले राजा को नहीं रखना चाहिए ।" पिंगलक ने कहा, "भद्र, यदि ऐसी बात है तो तू जा । तेरा पथ कल्याण. मय हो ।” दमनक भी उसे प्रणाम करके संजीवक की आवाज का पीछा करता हुआ चला | दमनक के चले जाने पर भय से व्याकुल- चित्त पिंगलक सोचने लगा "अहो, मैंने उसका विश्वास करके उसे यह ठीक नहीं किया । अपने पद से हटाए जाने की वजह से दमनक शायद दूसरे पक्ष से भी पैसे लेकर मेरे प्रति बुरा बरताव अगर करे तो फिर ? कहा भी है कि " जो पहले राजा के सम्मानित होते हैं और पीछे अपमानित, कुलीन होने पर भी हमेशा राजा को खतम करने का प्रयत्न करते हैं ।" 1 इसलिए उसकी चाल को जानने के लिए मैं दूसरी जगह जाकर उसका रास्ता देखूं, क्योंकि दमनक उस प्राणी को लाकर कदाचित मुझे
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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