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________________ मित्र-भेद दमनक ने कहा-- सियार और दुन्दुभि "गोमाय नाम के एक सियार ने भूख-प्यास से व्याकुल होकर खाने की खोज में वन में इधर-उधर घूमते हुए दो सेनाओं की लड़ाई का मैदान देखा। उसने वहां नगाड़े के ऊपर हवा से हिलती हुई शाखा की टोंक की रगड़ से पैदा हुई आवाज सुनी। घबराए मन से उसने सोचा, 'अरे मैं मर गया !' ऐसी बड़ी आवाज करने वाले जानवर की नजर में पड़ने के पहले मुझे चल देना चाहिए। लेकिन सहसा ऐसा करना ठीक नहीं। "भय अथवा खुशी के मौके पर जो सोचता है और उतावले में ___काम नहीं करता उसे झीखने का कभी मौका नहीं आता। तो अब मैं तलाश करूंगा कि यह किसकी आवाज है।” बाद में धीरज के साथ सोचता हुआ वह आगे बढ़ा और नगाड़ा देखा । उसमें से आवाज आती है, यह जानकर उसने पास जाकर खिलवाड़ के लिए उसे बजाया और फिर खुशी से विचारने लगा--"बहुत दिनों के बाद मुझे ऐसा बड़ा भोजन मिला है। निश्चय ही यह भरपूर माँस, चरबी और लहू से भरा होगा।" बाद में सख्त चमड़े से मढ़े हुए नगाड़े को किमी तरह चीरकर और एक भाग में छेद करके वह उसमें घुस गया । चमड़ा चीरते हुए उसके दाँत भी टूट गए । केवल लकड़ी के नगाड़े को देख निराश होकर सियार ने यह श्लोक पढ़ा-- "मैंने पहले जाना कि वह चरबी से भरा होगा। पर अन्दर घुसने के बाद उसमें जितना चमड़ा और जितनी लकड़ी थी, वह ठीक ठीक समझ में आई। इसलिए आपको केवल आवाज से डरना नहीं चाहिए।" पिंगलक ने कहा, "अरे भाई, जब हमारा सारा कुटुम्ब ही भय से व्याकुल होकर भाग जाना चाहता है तो मैं कैसे धैर्य धारण कर सकता हूँ।" दमनक ने कहा , “स्वामी ! इसमें उनका दोष नहीं है, क्योंकि सेवक स्वामी की तरह
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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