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________________ मित्र-भेद २५ . मारने की इच्छा रखता हो । कहा भी है-- "कमजोर भी अगर अविश्वासी है तो तगड़े से नहीं मारा जायगा। जो तगड़ा भी है। वह विश्वास में आकर कमजोर से भी मारा जाता है। "जो बुद्धिमान पुरुष अपनी बढ़ती आयुष्य और सुख की इच्छा . रखता है, वह वृहस्पति का भी विश्वास नहीं करता। "शपथ देकर भी संधि करने वाले दुश्मन का विश्वास नहीं करना चाहिए। राज्य पाने की अभिलाषा करने वाला वृत्र इन्द्र द्वारा शपथ लेकर भी मारा गया। "विश्वास के बिना शत्रु देवताओं के भी वश नहीं आते । इन्द्र ने विश्वास का ही फायदा उठाकर दिति के गर्भ को चीर डाला।" इस प्रकार निश्चय करके दूसरी जगह जाकर पिंगलक अकेला दमनक की बाट जोहने लगा । दमनक भी संजीवक के पास जाकर और उसे बैल जानकर प्रसन्न मन से सोचने लगा--"यह तो बड़ा अच्छा हुआ। इसके साथ मेल और लड़ाई कराने से पिंगलक मेरे वश में हो सकेगा। कहा भी है-- "जब तक दुःख अथवा शोक न आ पड़े, तब तक राजा केवल कुलीन अथवा मित्र भाव होने से ही मंत्रियों की बात नहीं मानता। आफत में पड़ जाने पर राजा हमेशा के लिए मंत्रियों के वश में हो जाता है। इसीलिए मंत्रिगण चाहते हैं कि राजा विपत्ति में पड़े। जिस तरह नीरोग मनुष्य अच्छे वैद्य की परवाह नहीं करता , उसी प्रकार बिना आफत में फंसा राजा मंत्रियों की परवाह नहीं करता।" इस तरह सोचते हुए दमनक पिंगलक की ओर बढ़ा। पिंगलक भी उसे आते देखकर अपने मनोभाव को छिपाता हुआ पहले की तरह ही बना रहा । दमनक ने पिंगलक के पास जाकर उसे प्रणाम किया और बैठ गया।
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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