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________________ पञ्चतंत्र ___ अपने पुरखों से मिले इस वन को एकायक छोड़ना आपको उचित नहीं। क्योंकि भेरी, बांसुरी, वीणा, मृदंग, ताल, पटह, शंख और काहल इत्यादि के बजाने से तरह-तरह की आवाजें निकलती हैं, इसलिए केवल आवाज से ही नहीं डरना चाहिए । कहा है कि "अति प्रबल और भयंकर शत्रु राजा के चढ़ आने पर भी जिसका धीरज नहीं टूटता, वह राजा कभी नहीं हारता। "विधाता के भय दिखलाने पर भी धीर पुरुषों का धैर्य नाश नहीं होता। गरमी में जब तालाब सूख जाते हैं तब भी समुद्र बराबर उछलता रहता है। उसी प्रकार "जिन्हें संकट में दुःख नहीं, ऐश्वर्य में हर्ष नहीं, और युद्ध में कायरता नहीं, ऐसे तीनों भुवनों के तिलक रूप बिरले ही पुत्र को माता जन्म देती है। उसी प्रकार "ताकत न होने से, नम बने हुए, निर्बल होने से गौरवहीन बने हुए तथा मानहीन प्राणी की और तिनके की एक-सी गति है । और भी "दूसरे के प्रताप का सहारा लेने पर भी जिसमें मजबूती नहीं आती, ऐसे लाख के बने गहने के समान मनुष्य के रूप से क्या प्रयोजन है ? यह नानकर आपको धैर्य धरना चाहिए और केवल आवाज से नहीं डरना चाहिए। कहा भी है-- "मैंने पहले जाना कि वह चरबी से भरा होगा, पर अन्दर घुसने के बाद उसमें जितना चमड़ा और जितनी लकड़ी थी, वह ठीक ठीक समझ में आ गया।"। पिंगलक ने कहा , “यह किस तरह ?"
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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