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________________ मित्र-भेद २१ भेड़िये इत्यादि पिंगलक के अभिप्राय को जानने वाले बाघ, चीता, सब दमनक की यह बात सुनकर उसी क्षण वहां से दूर छूट गए । इसके बाद दमनक बोला, "आप पानी पीने जाते-जाते फिर क्यों वापस लौटकर यहां बैठ गए ?" पिंगलक शरमीली हँसी से बोला, “इसमें कोई बात नहीं ।" दमनक बोला, "देव ! अगर यह बात कहने लायक नहीं है तो रहने दीजिए । कहा भी है- 1 कुछ बातें रिश्तेदारों से, से छिपाने जैसी होती हैं । यह वस्तु ठीक "कुछ बातें स्त्रियों से और कुछ बातें पुत्रों है अथवा नहीं, इस बात को गंभीर विचारकर विद्वान पुरुष को बात करनी चाहिए । 97 कुछ बातें मित्रों से यह सुनकर पिंगलक ने विचार किया, यह योग्य मालूम पड़ता है, इसीलिए इसके सामने मैं अपना मतलब बताऊंगा । कहा है कि "विशिष्ट गुणों के समझने वाले स्वामी के पास, गुणवान सेवक के पास, अनुकूल पत्नी पास, और अभिन्न मित्र पास अपना दुःख निवेदन करके मनुष्य सुखी होता है ।" फिर पिंगलक बोला, “हे दमनक, क्या तू दूर से आती हुई यह भयावनी आवाज सुनता है ?” उसने कहा, “स्वामी सुनता हूँ पर इससे क्या ?" पिंगलक ने कहा, “भद्र ! मैं इस जंगल से भाग जाना चाहता हूँ ।" दमनक ने कहा, "किसलिए ?" पिंगलक ने कहा, “इसलिए कि मेरे इस वन में कोई अजीब जानवर घुस गया है जिसकी यह बाहरी आवाज सुन पड़ती है । उसकी ताकत भी उसकी आवाज के समान ही होगी ।" दमनक ने कहा, "महाशय ! आप केवल आवाज से भयभीत हो गए, यह ठीक नहीं । कहा है कि " पानी से मेंढ़ टूट जाती है, गुप्त न रखने से छिपी बात फूट जाती है, चुगली खाने से स्नेह टूट जाता है और केवल शब्द से कायर डरता है ।
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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