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________________ पञ्चतंत्र तथा 'सियार हैं', यह मानकर स्वामी जो मेरी हेठी करते हैं, वह भी ठीक नहीं है, क्योंकि कहा है "रेशमी वस्त्र कीड़े से बनता है; सोना पत्थर से निकलता है; दूब पृथ्वी के रोयों से उगती है; लाल कमल कीचड़ में पैदा होता है; चन्द्रमा समुद्र में से निकला है; नील कमल गोबर से निकलता, है; आग काठ में होती है। मणि सांप के फन में होती है; पिउरी गाय के पित्त से निकलती है। इस प्रकार गुणी-जन अपने गुणों से ऊपर उठते और ख्याति पाते हैं। इसमें जन्म से क्या संबंध ? "नुकसान करने वाली घर में पैदा हुई चुहिया भी मार देने योग्य हैं; पर सहायक होने से बिल्ली को भोजन देकर भी लोग उसकी इच्छा करते हैं। "रेंड, भिंड. नरकुल और मदार बड़ी तादाद में संग्रह करने पर भी इमारती लकड़ी का काम नहीं देते, उसी प्रकार असंख्य अज्ञानियों से कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होता। "असमर्थ भक्त किस काम का? मुझे आप भक्त और समर्थ दोनों ही जानिए । मेरी अवज्ञा करना आपके योग्य नहीं है।" पिंगलक ने कहा, "ठीक है; असमर्थ हो कि समर्थ, तू हमेशा के लिए मेरा मंत्रि-पुत्र है, इसलिए जो कुछ भी कहना चाहता है निःशंक होकर कह।" दमनक ने कहा, “देव, आपसे कुछ बिनती करनी है।" "जो कुछ कहना चाहता है कह,” पिंगलक ने कहा। उसने कहा , “बृहस्पति का कहना है कि "अगर राजा का बहुत थोड़ा-सा भी काम हो तो उसे सभा के बीच में नहीं कहना चाहिए। इसलिए महाराज, आप मेरी विनती एकांत ही में सुनिए । कारण कि "राजकीय मंत्रणा अगर छ: कानों में जाय तो वह प्रकट हो जाती है, पर चार कानों से वह बाहर नहीं जाती। इसलिए बुद्धिमान इस बात की कोशिश करता है कि छ: कानों का त्याग हो।"
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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