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________________ मित्र-भेद "ऐसा जानकर राजा को विचक्षण, कुलीन, बहादुर, मजबूत तथा खानदानी मनुष्यों को सेवक बनाना चाहिए। . "जो सेवक राजा का दुष्कर और उत्तम काम करके लज्जा से कुछ कहता नहीं, उससे राजा सर्वदा सहायवान रहता है। "जिसे कार्य सौंपकर निःशंक चित्त से बैठा जा सके, ऐसे सेवकों को, मानो वह राजा की दूसरी स्त्री ही हो, ऐसा भला मानना चाहिए। "जो बिना बुलाए पास आता, है सदा द्वार पर खड़ा रहता है तथा पूछने पर सच्ची और थोड़ी बातें करता है, वह राजाओं के योग्य सेवक है। "राजा के लिए हानिप्रद वस्तु देखकर बिना आज्ञा के भी जो उसे नष्ट करने की कोशिश करता है, वह राजाओं का योग्य सेवक है। "राजा अगर उसे मारे, गालियां दे और दण्ड दे, फिर भी राजा की अनिष्ट चिंता नहीं करता, वह राजाओं का योग्य सेवक है । "जो कभी मान में गर्व नहीं करता , न अपमान में तपता है और सर्वदा अपना आकार ज्यों-का-त्यों रखता है, वही राजाओं का योग्य सेवक है। "जो कभी भूख और नींद से पीड़ित नहीं होता, न ठंडक या गरमी से, वह सेवक राजाओं का योग्य सेवक है। "जो भविष्य में होने वाले युद्ध की बात सुनकर. स्वामी की ओर प्रसन्न मुख से देखता है, वह राजाओं का योग्य सेवक है। "जिसकी देखभाल से शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा की तरह राज्य-सीमा नित्य बढ़ती है, वही सेवक राजाओं के योग्य है। "जिसके अधिकार से अग्नि में जैसे चमड़ा सिकुड़ जाता है वैसे ही राज्य सीमा संकुचित हो जाती है, राज्य की इच्छा रखने वाले राजा को तो ऐसा सेवक छोड़ देना चाहिए।
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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