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________________ पञ्चतंत्र "सोने के गहनों में जड़न लायक नगीने को अगर सीसे में जड़ दिया जाय तो न तो वह रोता है न शोभाहीन होता है । पर उसे इस तरह लगाने वाला ही निन्दा का पात्र होता है। स्वामी ने यह कहा, 'बहुत दिनों बाद मिले' इसके बारे में सुनिए--- "जहां दाएं और बाएं का भेद लोग नहीं समझते वहां और ठिकाने वाला आर्यपुरुष किस तरह क्षण-भर भी ठहर सकता है ? "जिसकी बुद्धि काँच को मणि और मणि को काँच समझती है, उसके पास नाम-मात्र के लिए कोई सेवक कैसे ठहर सकता है। "जिस देश में समुद्र से उत्पन्न कीमती जवाहरातों के पारखी नहीं हैं, ऐसे अमीर देश वाले तीन कौड़ियों में चन्द्रकांत मणि बेच देते हैं। "जहां माणिक और लोहिताख्य मणियों में अन्तर नहीं समझा जाता, उस देश में जवाहरात किस तरह बेंचा जाय ? 'जहां स्वामी सब सेवकों के साथ एक समान व्यवहार करते हैं, वहां उद्यमशील सेवकों का उत्साह ढीला पड़ जाता है। "सेवकों के बिना राजा और राजा के बिना सेवक नहीं रह सकते। उनका यह व्यवहार एक दूसरे को जोड़ने वाला होता है। "लोगों पर अनुग्रह करने वाले सेवकों के बिना अकेला राजा तेजस्वी, पर बिना किरणों के सूर्य के समान शोभा नहीं पाता। "चक्र की धुरी आरों की आधारभूत होती है , और आरे धुरी के सहारे टिके रहते हैं। स्वामी और सेवक का वृत्ति-चक्र भी इसी प्रकार चलता है। "नित्य सिर पर तेल लगाने से बढ़ा हुआ बाल बिना तेल के मुरझा जाता है और सफेद हो जाता है, तो फिर सेवक कैसे विराग न हो ? "प्रसन्न होकर राजा सेवकों को केवल धन देता है, पर सेवक केवल सम्मान-मात्र से ही अपने प्राणों से उसका उपकार करता है।
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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