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________________ २५३ लब्धप्रणाश करती नहीं। स्त्रियों का स्वभाव ही विचित्र है ! "झूठे ज्ञान से नितम्बिनी स्त्री को सुन्दरी जानकर जो उसके पास .. जाता है, ऐसा आदमी दिये में पतंगे की तरह जल जाता है । ''जवान स्त्रियां गुंजाफल की तरह स्वाभाविक रीति से ही भीतर जहर से भरी और बाहर से सुन्दरी होती हैं। "डंडे से मारने पर अथवा हथियार से टुकड़े करने पर, चीजें भेंट देने पर और प्रशंसा करने पर भी स्त्रियां वश में नहीं आतीं। "यह सब बात रहने दो, स्त्रियों की दूसरी तुच्छता की बात ही क्या करनी ! अपने से पैदा पुत्र को भी गुस्से से वे मार डालती हैं। "मूर्ख आदमी रूखी युवती में स्नेह-सम्भार की, उसकी कठोरता में मिठास की , और उसकी नीरसता में रस की कल्पना ___ करता है।" मगर बोला, "अरे मित्र ! यह तो ठीक है,पर मैं क्या करूं? मेरे ऊपर तो दो आफतें आ पड़ी हैं। एक तो मेरा घर बरबाद हुआ और दूसरे तेरे जैसे मित्र से खटपट हुई । अथवा अभाग्यवश ऐसा ही होता है। कहा भी है कि "जितनी मेरी चतुराई है, उससे दुगुनी तेरी है, पर तेरा जार अथवा पति इन दोनों में से एक भी बाकी नहीं रहा। अरी नंगी स्त्री. अब तू क्या देखती है।" बन्दर बोला , “यह कैसे ?" मगर कहने लगा - खेतिहर की स्त्री, धूर्त और सियारिन की कथा "किसी नगर में एक किसान पति और पत्नी रहते थे। अपने पति के बूढ़े होने से उस खेतिहर की स्त्री की तबीयत हमेशा दूसरे में लगी रहती थी और इसलिए स्थिर होकर वह घर में नहीं बैठती थी, केवल दूसरे आदमियों की खोज में इधर-उधर घूमा करती थी। एक दिन दूसरे के धन हड़पने वाले किसी ठग ने उसे देखा और अकेले में उससे कहा कि “सुभगे! मेरी स्त्री मर
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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