SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५२ पञ्चतन्त्र में काफी मेहनत पड़ने लगी । एक दिन वह मतवाला दूर से ही गधी का रेंकना सुनकर ऊंचे सुर से रेंकने लगा । इस पर खेत के रखवालों ने उसे बाघ के चमड़े में गधा जानकर लाठी, तीर, और पत्थरों से मार डाला । इसलिए मैं कहता हूं कि " बाघ के चमड़े से ढका हुआ गया भयंकर रूप दिखाते हुए रक्षा करने पर भी बात से ही मारा गया ।" मगर के साथ जब वह बात कर रहा था उसी बीच में एक जलचर ने आकर मगर से कहा, “ अरे मगर ! अनशन करती हुई तेरी स्त्री तेरे देर करने पर प्रीत टूटने के डर से मर गई ।" - बिजली गिरने की तरह उसकी बातें सुनकर अत्यंत व्याकुल होकर मगर रोता हुआ कहने लगा, “ अरे ! मुझ अभागे पर यह कैसी विपत्ति आ पड़ी। कहा है कि “जिसके घर में माता और मीठा बोलने वाली पत्नी नहीं है, उसे वन में चला जाना चाहिए, क्योंकि उसके लिए वन और घर _एक समान है। इसलिए मित्र ! तू मुझे क्षमा कर । मैं तेरा अपराधी हूँ । अब में उसके वियोग से आग में जल मरूंगा !" 3 यह सुनकर हंसकर बन्दर ने कहा, “अरे! मैं पहले से ही जानता था कि तू स्त्री के वश में है और उससे जीता गया है, अब मुझे उसका पूरा विश्वास हो गया । अरे बेवकूफ ! आनंद में भी तू क्यों दुखी है ? ऐसी स्त्री के मरने पर तो तुझे खुशी मनानी चाहिए। कहा है कि "जो पत्नी दुष्ट आचरण की हो, और जिसे हमेशा कलह भाता हो, उसे चतुर आदमियों को पत्नी के रूप में दारुण जरा जानना . चाहिए । " इसलिए इस दुनिया में जो अपनी भलाई चाहता हो उसे हर कोशिश से स्त्रियों का नाम भी छोड़ देना चाहिए " "उसके भीतर जो होता है वह जीभ पर नहीं होता । जो जीभ पर होता है उसे वह बाहर नहीं निकालती । वह जो बोलती है वह
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy