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________________ काकोलूकीय ခုခု कैसे कही ?" अपनी बात छिपाने के लिए उसने कहा, "कुछ भी नहीं।" उसकी नकली बात के फेर में पड़कर जलपाद उसका असली मतलब नहीं समझ सका । बहुत कहने से क्या लाभ ? उसने सबको खाकर मेढकों को निर्मूल कर दिया। इसलिए मैं कहता हूँ कि बुद्धिमान समय पर दुश्मन को पीठ पर चढ़ाता है। बड़े काले सांप ने बहुत से मेढकों को मार डाला। हे राजा, जिस तरह मन्दविष ने अपने बुद्धि-बल से मेढकों को मार डाला, उसी तरह मैंने भी सब वैरियों को मार डाला। यह ठीक ही कहा है कि "बन में जलती हुई अग्नि जड़ों को बचा देती है पर मृदु और शीतल वायु उन्हें उखाड़ फेंकता है।" __ मेघवर्ण ने कहा, "तात, यह ठीक है, जो बड़े होते हैं वे महान् आपत्ति आने पर भी आरंभ किये हुए काम को नहीं छोड़ते। कहा भी है - "नीतिरूपी गहने पहने हुए बड़ों की बड़ाई इसी में है कि वे दुःख आने पर भी आरंभ किये हुए काम को नहीं छोड़ते । और भी "नीच पुरुष विघ्न के भय से काम को नहीं शुरू करते । मध्यम पुरुष काम शुरू करने के बाद विघ्न आने से रुक जाते हैं। पर हजारों विघ्नों से अटकाये जाने पर भी उत्तम पुरुष शुरू किये हुए काम को नहीं छोड़ते। शत्रु को निर्मूल करके तुमने मेरा राज्य निष्कंटक बना दिया है। अथवा नीति शास्त्र जानने वालों के लिए यह ठीक ही है। कहा है कि "बाकी कर्जा, अनबुझी आग, बची बीमारी और उसी तरह बचा हुआ शत्रु फिर-फिर से बढ़ते हैं। इसलिए इन चीजों को बाकी नहीं रहने देना चाहिए।"
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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