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________________ २२६ पञ्चतन्त्र करते हुए देखकर उसके पति ने कहा, “भद्रे यह क्या बात है ? तू रोज यह माल कहां ले जाती है, सच कह।" हाजिरजवाबी से बात बनाकर उसने पति से कहा, "यहां से पास में देवी का मंदिर है। वहीं मैं उपवास करके नित्य नये-नये खाने के पदार्थ ले जाती हूं।" उसके देखते-देखते वह सब चीजें लेकर देवता के मंदिर की ओर चल दी। उसने यह मान लिया कि उस का पति उसे देवी का भोग मान लेगा- 'मेरी ब्राह्मणी देवी के भोग के लिए नित्य नये भोजन बनाकर ले जाती है।' देवी-मंदिर में जाकर स्नान के लिए नदी में उतरकर जब तक वह नदी में स्नान करने लगी तब तक दूसरे रास्ते से उसका पति वहां आकर देवी के पीछे छिपकर बैठ गया। स्नान करने के बाद ब्राह्मणी देवी के मंदिर में आकर स्नान, अनुलेपन, माला, धूप और बेलपत्रिका से देवी-पूजा करते हुए प्रणाम करके बोली, "देवी ! किस तरह मेरा पति अंधा हो जायगा?' यह सुनकर अपनी आवाज बदलकर देवी के पीछे बैठे हुए ब्राह्मण ने कहा, 'यदि रोज-रोज तू अपने पति को घेवर खिलाए तो वह शीघ्र अंधा हो जायगा।' नकली वचन से ठगी जाकर वह दुष्टा भी उस ब्राह्मण को नित्य घेवर देने लगी। एक दिन ब्राह्मण ने कहा, “भद्रे ! मैं ठीक-ठीक नहीं देख सकता।" यह सुनकर उसने सोचा कि देवी के प्रसाद से ऐसा हुआ है। इसके बाद उसका प्यारा विट उसके पास 'अंधा ब्राह्मण मेरा क्या करेगा,' यह मानकर प्रतिदिन आने लगा। एक दिन आदत के अनुसार उसे भीतर घुसता देखकर ब्राह्मण ने उसके बाल पकड़कर लाठी और पैर से उसे इतना मारा कि वह मर गया। उसने अपनी दुष्टा स्त्री की नाक काटकर उसे भी निकाल दिया । ___ इसलिए मैं कहता हूं कि मैं यह सब जानता हूं कि मेढकों से मेरा मेल नहीं। घृतांध ब्राह्मण की तरह मैं कुछ दिनों तक बाट जोह रहा हूं।" इसके बाद मन्दविष ने हँसते हुए कहा, “मेढकों का अनेक तरह का स्वाद होता है ।" यह सुनकर जलपाद घबरा गया । उसने क्या कहा, यह सुनकर वह फौरन उसके पास जाकर बोला, “भद्र ! तुमने यह, खिलाफ बात
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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