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________________ २२८ पञ्चतन्त्र उसने कहा, “ देव ! आप भाग्यवान हैं, जिसके सब आरम्भ किये हुए काम पूरे होते हैं । केवल शूरता ही सब काम पूरा नहीं कर सकती, पर बुद्धिमानी से अगर काम किया जाय तो फतह होती है । कहा भी है कि “हथियारों से मारा गया दुश्मन वस्तुतः मारा गया नहीं कहा जा सकता । बुद्धि से यदि वह मारा गया हो तो वह ठीक-ठीक मारा गया कहलाता है । हथियार तो एक शरीर मात्र को मारता है, पर बुद्धि उसके कुल वैभव तथा यश को मारती है । 1 “ काम शुरू करने पर बुद्धि बढ़ती है, स्मृति मजबूत होती है, समृद्धि को खींचने वाला यंत्र कभी टूटता नहीं, सब तर्क ठीक उतरते हैं । मनुष्य का प्रशंसनीय काम में प्रेम उत्पन्न होता है, तथा चित्त की उन्नति होती है । कहा भी है- "त्यागी, शूर और विद्वानों के साथ से लोगों में गुण बढ़ता है, गुण से धन, धन से लक्ष्मी, लक्ष्मी से आज्ञा और उससे राज्य होता है । " मेघवर्ण ने कहा, “अवश्य ही नीति शास्त्र का यह हाथों-हाथ फल है, जिसे पालन करते हुए आपने घुसकर परिवार सहित अरिमर्दन को समाप्त कर दिया ।" स्थिरजीवी ने कहा- "तीक्ष्ण उपायों से भी जो अर्थ मिल सकता है उसका भी शुरू में सहारा लेना पड़ता है । अत्यन्त ऊंचे तने वाले बट वृक्ष को बिना पूजे हुए कोई नहीं काटता । अथवा स्वामी ! यह कहने से क्या कि समय में काम न करने पर भी कोई बात दुःख और कठिनता से की जा सकती है। ठीक ही कहा है कि "जिन्होंने निश्चय नहीं किया है, उद्योग करने में डरपोक, कदमकदम पर दोष दिखलाने वाले, फल के लिए आपस में झगड़ने वाले, इस लोक में हँसी के पात्र होते हैं । "छोटे से काम का भी बुद्धिमान अनादर नहीं करते, जैसे 'मैं इस
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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