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________________ काकोलूकीय २०६ मुबाहसे और भेदभाव की आवाज से ब्राह्मण जाग पड़ा। इस पर चोर तुझे यह राक्षस खाना चाहता है । "" ने कहा, " ब्राह्मण ! राक्षस ने भी कहा, "ब्राह्मण ! यह चोर तेरे बैलों की जोड़ी चुराना चाहता है । यह सुनकर ब्राह्मण ने सावधान होकर इष्ट देवता के मंत्रों से राक्षस से अपनी और डंडे से बैल की जोड़ी बचा ली । इसलिए मैं कहता हूं कि “आपस में झगड़ते दुश्मन हितू हो जाते हैं। जैसे चोर और राक्षस ( की लड़ाई ) से बछड़े के जोड़े की जान बच गयी । " ܕܐ उसकी बात सुनकर अरिमर्दन ने फिर प्राकारकर्ण से पूछा " तुम्हारी इसके बारे में क्या सलाह है ? ” उसने कहा, “देव, यह अवध्य है । इसको बचा लेने से शायद वह मित्रतापूर्वक सुख से अपना समय बितावेगा। कहा भी है "जो प्राणी आपस का भेद नहीं छिपाते वे पेट में बांबी बनाकर रहने वाले सर्प की तरह मर जाते हैं ।" अरिमर्दन ने कहा, " यह कैसे ?" प्राकारकर्ण ने कहा- पेट को बांबी बनाकर रहनेवाले सांप की कथा " किसी नगर में देवशक्ति नामक राजा रहता था। पेट में बांबी की तरह रहनेवाले सांप से उसके पुत्र का शरीर छीजता जाता था । अनेक उपचारों से अच्छे वैद्यों द्वारा शास्त्रोक्त दवाएं देने पर भी उसे आराम नहीं होता था । घबराकर वह राजकुमार बाहर निकल गया तथा किसी मंदिर में भीख मांगकर अपना समय बिताने लगा । उस नगर में बलि नाम का राजा था । उसको दो जवान लड़कियां थीं । वे दोनों हर रोज सूर्योदय के समय अपने पिता के पैरों के पास जाकर प्रणाम करती थीं। एक ने कहा " महाराज विजयी हों ! जिनकी कृपा से सब सुख मिलते हैं ।" दूसरी ने कहा महाराज अपना किया भोगें ।" इसे सुनकर गुस्से से राजा ने कहा, " मंत्री, इस कडुवा बोलनेवाली राजकुमारी को किसी "
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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