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________________ २०८ पञ्चतन्त्र अरिमर्दन ने कहा, "वह कैसे ? " वक्रनाश कहने लगा ब्राह्मण, चोर और पिशाच की कथा किसी नगर में द्रोण नाम का एक गरीब ब्राह्मण दानदक्षिणा से. अच्छे वस्त्र, इत्र, गंध, माला, गहने, पान आदि छोड़कर, बाल, दाढ़ी और नाखून बढ़ाकर गरमी, ठंडक और बरसात से अपना शरीर सुखाता हुआ रहता था। किसी यजमान ने दया करके उसे बछड़ों का एक जोड़ा दे दिया। उस ब्राह्मण ने बचपन से ही मांगे हुए घी, तेल और जौ से उनको पालकर खूब मोटा ताजा बना दिया। उन्हें देखकर एकाएक एक चोर ने सोचा "मैं इस बछड़े के जोड़े को चुरा लूंगा।" ऐसा निश्चय करके बांधने की रस्सी लेकर जब वह चला तो आधे रास्ते में अलग-अलग तीखे दांत ऊंची नाक, लाल-लाल आंख, बदन पर उमड़ी हुई स्नायु, सूखे गात्र, आग की तरह लाल दाढ़ी और बाल वाले किसी व्यक्ति को देखा । उसे देखकर बहुत डरकर चोर ने कहा, " तू कौन है ? " उसने जवाब दिया, " सत्यवचन नामक मैं ब्रह्मराक्षस हूं । तू भी अपना परिचय कह ।" उसने कहा, "मैं क्रूरकर्मा चोर हूं। गरीब ब्राह्मण के बैल के जोड़े चुराने के लिए जा रहा हूं।" विश्वास हो जाने पर ब्रह्मराक्षस ने कहा, “भद्र ? मैं बहुत भूखा हूं, इसलिए मै उस ब्राह्मण को खाऊंगा। बड़ी अच्छी बात है कि हम दोनों का एक ही काम है।” दोनों वहां समय की बाट जोहते खड़े रहे । सोये हुए ब्राह्मण और उसको खाने के लिए तैयार राक्षस को देखकर चोर ने कहा, “ भद्र ! यह न्याय नहीं है। मेरे बैल के जोड़े चुराने के बाद तुम इस ब्राह्मण को खाना।" उसने कहा, " बैलों के हंकारने से अगर ब्राह्मण जाग गया तो मेरी तरद पड़ जायगी।" चोर ने भी कहा, " तेरे खाने की तैयारी में अगर जरा भी देर हुई तो मैं बैल के जोड़े नहीं चुरा सकूँगा। इसलिए पहले बैलों की जोड़ी चुरा लेने दे, बादमें तू ब्राह्मण को खाना"। आपस के बहस
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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