SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१० . पञ्चतन्त्र विदेशी को दे दो जिससे यह अपने किये का फल भोगे।" "ऐसा ही हो"-यह कहकर थोड़े से साथियों के साथ उस राजकुमारी का विवाह मंत्रियों ने मंदिर में ठहरे हुए राजकुमार के साथ कर दिया। वह भी खुशी-खुशी देवता की तरह अपने पति को अंगीकार करके उसके साथ दूसरे देश में चली गई। किसी दूर देश के नगर के तालाब के किनारे राजकुमार को घर की रखवाली पर तैनात करके वह स्वयं नौकरों के साथ नोन, तेल, घी और चावल खरीदने चली गई। जब तक खरीद-फरोख्त करके वह लौटे । तब तक राजा सांप की बांबी पर अपना सिर रख के सो गया। उसके मुंह से फन निकालकर सांप हवा खाने लगा। उस बांबी से दूसरा सांप भी निकलकर वैसा ही कर रहा था। एक दूसरे को देखकर दोनों की आँखें लाल हो गई और बांबी वाले सांप ने कहा, “ओ बदमाश, इस सर्वांग सुन्दर राजकुमार को तू क्यों तकलीफ देता है ? ।" मुह में बैठे सांप ने कहा "ओतू बदमाश भी बांबी के बीच सोने से भरे दो घड़ों का क्या कर रहा है?" फिर बांबीवाले सांप ने कहा, "ओ बदमाश, इसकी दवा कौन नहीं जानता? जीरा और सरसों मिलाकर कांजी पीने से तेरा नाश होता है।" पेटवाले सांप ने इसका जवाब दिया-"तेरी भी दवा का किसे पता नहीं है ? गरम तेल अथवा बहुत गरम पानी से तेरा नाश होता है।" उस राजकन्या ने पेड़ की आड़ से दोनों की भेद भरी बातें सुनकर वैसा ही किया। दवा देकर अपने पति को चंगा कर के और धन पाकर अपने देश की ओर चल पड़ी। पिता-माता और रिश्तेदारों से पूजित तथा विहित उपभोग पाकर वह सुख से रहने लगी। इसलिए मैं कहता हूं कि-"जो प्राणी आपस के भेद नहीं छिपाते वे पेट में बांबी बनाकर रहने वाले सर्प की तरह मर जाते हैं।" __यह सुनकर स्वयं अरिमर्दन ने उस बात का समर्थन किया । उसके ऐसा कहने पर भीतरी हँसी हँसकर रक्ताक्ष ने फिर कहा – “दुःख है कि हमारे अन्याय से स्वामी मारे जा रहे हैं । कहा भी है -- "जहां अपूज्यों की पूजा होती है , और पूजनीयों का अपमान,
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy