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________________ पञ्चतन्त्र हुए समय बिताने लगे। __लघुपतनक भी प्रेमपूर्वक मांस के टुकड़े, बलि के बचे भाग और दूसरे पकवान हिरण्यक के लिए लाता था । हिरण्यक भी रात में चावल और दूसरे भोज्य पदार्थ लघुपतनक के लिए लाकर ठीक समय आने पर उसे उन्हें देता था। अथवा दोनों ही के लिए यह ठीक था। कहा है कि "देना और लेना, गुप्त बातें कहना और पूछना, खाना और खिलाना, प्रेम के ये छ लक्षण हैं। "उपकार किये बिना किसी की कभी प्रीति नहीं होती , क्योंकि देवता भी मन्नत करने से ही मनचाही चीज देते हैं। "जबतक चीज देने में आती है, तभी तक इस संसार में मित्रता रहती है । बछड़ा भी दूध की कमी देखकर अपनी मां को छोड़ देता है। "तुरन्त ही विश्वास दिलाने वाला दान का माहात्म्य देख , जिसके प्रभाव से क्षण-भर में ही शत्रु मित्र हो जाता है। "बुद्धिरहित पशु की दृष्टि में भी दान पुत्र से बढ़कर है, यह मैं मानता हूं, क्योंकि खाने के लिए खली देने से बच्चे वाली भैस भी अधिक दूध देती है, यह तो देखो। "चूहे और कौए ने नाखून और मांस की तरह , गाढ़ी और दुर्भेद्य प्रीति करके , कृत्रिम मित्रता पाई। इस तरह कौए के उपकारों से प्रसन्न होकर चूहे का विश्वास इतना बढ़ गया कि वह कौए के पंख के नीचे घुसकर हमेशा उसका संग-साथ करने लगा। ___ एक दिन आंखों में आंसू भरकर कौआ चूहे के पास आकर भरी आवाज से कहने लगा , “भद्र हिरण्यक ! इस देश से मैं घबरा गया हूं, इसलिए मैं दूसरी जगह जाता हूं।" हिरण्यक ने कहा, "भद्र ! विरक्ति का कारण क्या है ?"उसने कहा,“भद्र! सुनो इस देश में पानी बिलकुल न बरसने से अकाल पड़ गया है। अकाल से भूखे लोग बलि भी नहीं देते। दूसरे घर-घर भूखे
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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