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________________ मित्र-संप्राप्ति लोग चिड़ियों को फंसाने के लिए जाल फैलाये बैठे हैं। मैं भी उस जाल में फंस गया था,पर जिंदगी बाकी रहने से मैं उसमें से निकल आया। यही विरक्ति का कारण है। विदेश जाने के लिए तैयार होकर मैं इसीलिए रो रहा हूं।" हिरण्यक ने कहा, “तुम कहां जा रहे हो?" उसने कहा, “दक्षिणापथ के एक गहन वन के बीच एक बड़ा तालाब है । वहां तुझसे भी अधिक मेरा परम मित्र मंथरक नाम का कछुआ रहता है। वह मुझे मछलियों के मांस के टुकड़े देगा जिन्हें खाकर उसके साथ बातचीत और संग-साथ का मजा उठाते हुए मैं अपना समय बिता दूंगा। मैं यहां जाल में फंसकर चिड़ियों का मारा जाना देखना नहीं चाहता । कहा भी है "हे भाई ! सूखा पड़ने से, देश वीरान हो जाने पर और अन्न का नाश हो जाने पर भी धन्य हैं वे जो देश का भंग और कुल का क्षय नहीं देखते । "समर्थों के लिए बहुत बोझ क्या है ? व्यवसाइयों के लिए दूरी क्या हैं, विद्वानों के लिए विदेश क्या है और प्रियवादियों के लिए दूसरा कौन है ? "विद्वत्ता और राज्यसत्ता कभी भी एक समान नहीं हैं। राजा अपने देश में पूजा जाता है पर विद्वान सब जगह पूजा जाता है। हिरण्यक ने कहा , “अगर यही बात है तो मैं भी तेरे साथ चलूंगा। मुझे भी बहुत तकलीफ है।" कौए ने कहा, “अरे ! तुझे कौनसा दुःख है, उसे तो कह।" हिरण्यक ने कहा, “अरे ! उस बारे में बहुत कुछ कहना है । वहां जाकर विस्तारपूर्वक कहूंगा।" कौए ने कहा, “मैं तो आकाश-मार्ग से जाने वाला हूं, तो तू फिर मेरे साथ कैसे चलेगा ?"उसने कहा, “अगर तू मेरी जान बचाना चाहता है तो अपनी पीठ पर बैठाकर मुझे वहां पहुंचा । मैं किसी दूसरी तरह से वहां नहीं पहुंच सकता।" यह सुनकर कौआ बड़ी खुशी के साथ बोला, "अगर यह बात है तो मैं अपने को धन्य मानता हूं, क्योंकि वहां भी मैं तेरे साथ समय बिता सकूँगा। मैं संपात आदि उड़ने के आठ तरीकों को जानता हूं। इसलिए तू मेरी पीठ पर चढ़, जिससे मैं तुझे सुखपूर्वक सरोवर के पास ले
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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