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________________ मित्र-संप्राप्ति 939 विश्वासी को कमजोर भी झट मार सकते हैं। "विष्णुगुप्त के अनुसार सत्कृत्य करना,भार्गव के अनुसार मित्र प्राप्त करना और बृहस्पति के अनुसार किसी का विश्वास न करना, ये तीन प्रकार के नीति मार्ग हैं । और भी "अपने से प्रेम न करने वाली स्त्री के और शत्रु के पास बहुत सी दौलत रखकर जो उनके ऊपर विश्वास रखता है उसके जीने का वहीं अंत हो जाता है।" यह सुनकर लघुपतनक भी निरुत्तर होकर सोचने लगा, “अहो, नीति के विषय में इसकी बुद्धि कितनी कुशल है ! अथवा इसी कारण मेरा इसके साथ बरबस मित्रता करने का इरादा हुआ है। बाद में वह बोला , “हिरण्यक ! ____ "विद्वान कहते हैं कि सज्जनों की सात कदम एक साथ चलने से ही मित्रता हो जाती है, इसलिए तुझे मित्रता तो मिल गई है। मेरी बात सुन-- अगर मेरा विश्वास न होता हो तो अपने बिल-दुर्ग में ही रहते हुए गुण-दोष आदि दिखाने वाले सुभाषितों और कथाओं की बातचीत तू मुझसे करना।" ___यह सुनकर हिरण्यक ने विचार किया , ""यह लघुपतनक बोलचाल में होशियार और सच्चा दिखलाई देता है, इसलिए इसके साथ मित्रता करना ठीक है।" यह विचारकर उसने कहा, “भद्र ! यहीं बात है तो तेरे साथ मेरी मित्रता ठीक होगी। पर तुझे कभी मेरे किले में पैर नहीं रखना चाहिए । कहा है कि "शत्रु पहले धीरे-धीरे डरते हुए पृथ्वी पर डग भरता है, फिर जैसे जार का हाथ स्त्री के ऊपर पड़ता है उसी तरह बह जल्दी से आगे बढ़ता है।" यह सुनकर कौए ने कहा, "भद्र ! ऐसा ही हो।" उस दिन से दोनों बातचीत और संग-साथ करते हुए तथा एक दूसरे का उपकार करते
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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