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________________ पञ्चतन्त्र करके कहा, “ हम सब समुद्र को सोखने के लायक नहीं हैं, फिर फिजूल कोशिश करने से क्या लाभ ? कहा है कि "जो कमजोर आदमी घमंड में आकर अपने से बड़े आदमी के साथ लड़ाई लड़ने जाता है वह दाँत टूट गए हाथी के समान पीछे लौटता है । हमारे स्वामी गरुड़ हैं, इसलिए इस सारे अपमान का हाल उनसे कहना चाहिए, जिससे अपनी जाति के अपमान से क्रोधित होकर वें बदला ले सकेंगे। अगर वे घमंड में आकर हम सब की बातें नहीं सुनें तो भी हम सबको दुख नहीं होगा। कहा भी है कि "एक-दिल मित्र के पास , गुणी नौकर के पास , अनुकूल स्त्री के पास, ताकतवर स्वामी के पास दुख निवेदन करके मनुष्य सुखी होता है । इसलिए हम सब को गरुड़ के पास जाना चाहिए, क्योंकि वह हमारे स्वामी हैं।" यह निश्चय करके, फीके बदन और आँखों में आँसू भरे हुए पक्षियों ने गरुड़ के पास जाकर करुण स्वर में फरियाद करना शुरू किया। “अहो अब्रह्मण्यम्! अब्रह्मण्यम्! आपके हमारे स्वामी होते हुए भी इस सच्चरित्र टिटिहरे के अंडे समुद्र चुरा ले गया , जिससे इस पक्षी का कुल नाश हो गया है। इसी प्रकार समुद्र दूसरों का भी मनमानी तौर से नाश करेगा। कहा है कि "एक आदमी का निन्दनीय काम देखकर दूसरा भी वही काम करता है । संसार तो एक-दूसरे के पीछे चलने वाला है। वह दूसरे की भलाई (सच्ची बात) को जानने वाला नहीं है । उसी प्रकार "धूर्तों, चोरों, दुराचारियों और साहसिकों आदि से पीड़ित तथा कपट और प्रपंच से ठगी हुई प्रजा की रक्षा करनी चाहिए । जो राजा रक्षा करता है उसे प्रजा के धर्म में से छठा भाग मिलता है; जो राजा रक्षा नहीं करता उसे अधर्म में से छठां भाग मिलता है ।
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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