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________________ मित्र-भेद "प्रजापीडन के संताप से पैदा हुई आग राजा की लक्ष्मी, कुल और 'प्राण का नाश किये बिना शांत नहीं होती। "जिसके बंधु नहीं होते, राजा उनका बंधु है; जिसकी आंखें नहीं होतीं उनकी आंख है, और वह कानून से चलने वालों का माता पिता है। "फल की इच्छा रखने वाला माली जैसे यत्नपूर्वक अंकुरों को सींचता है, उसी प्रकार फल की इच्छा रखने वाले राजा को दान-मान आदि रूपी जल से यत्नपूर्वक प्रजा-पालन करना चाहिए। "बीज के पतले अँखुओं की भी अगर यत्नपूर्वक रखवाली की जाय तो यथासमय वे फल देते हैं। उसी प्रकार सुरक्षित प्रजा भी यथासमय फल देने वाली होती है । "राजा के पास जो सोना , गल्ला, जवाहरात और अनेक तरह की सवारियां तथा और भी जो कुछ होता है वह प्रजा से ही मिला होता है ।" यह सुनकर पक्षियों के दुख से दुखी और क्रुद्ध होकर गरुड़ सोचने लगे, "इन पक्षियों ने ठीक ही कहा है। अब मैं तुरन्त जाकर उस समुद्र को सोखता हूँ।" वह यह सोच ही रहे थे कि इतने में ही विष्णु के एक दूत ने आकर कहा , “अरे गरुड़ ! भगवान नारायण ने मुझे तेरे पास भेजा है। देवताओं के काम के लिए भगवान स्वर्ग जाने वाले हैं, इसलिए जल्दी चल।" यह सुनकर गरुड़ ने अभिमान के साथ कहा, "अरे दूत ! मेरे जैसे छोटे सेवक से भगवान का क्या काम ? इसलिए तू जाकर उनसे कह कि मेरी जगह सवारी में आप किसी दूसरे सेवक को रख लीजिये । भगवान से तू मेरा नमस्कार भी कहना । कहा भी है-- "जो मनुष्य किसी दूसरे का गुण नहीं जानता उसकी सेवा पंडितों को नहीं करनी चाहिए। ऊसर जमीन को अच्छी तरह जोतने पर भी जैसे उसमें कुछ पैदा नहीं होता, उसी तरह ऐसे आदमी से भी
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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