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________________ मित्र-भेद मैं तेरी सहायता चाहता हूँ।" मक्खी ने कहा , “भद्र ! इस बारे में क्या कोई कहने की बात है ? कहा है कि "उपकार का बदला देने के लिए मित्रों का भला किया जाता है, पर मित्र का कौनसा हितकार्य मित्रों ने नहीं किया है ? यह सच है, मेरा भी मेघनाद नामक मेढ़क मित्र है। उसे भी बुलाकर जैसा होगा वैसा करना चाहिए । कहा भी है-- "भलाई चाहने वाले सदाचारी, शास्त्रज्ञ और बुद्धिमान विद्वानों द्वारा विचारे गए उपाय कभी निष्फल नहीं जाते।" बाद में तीनों मेघनाद के पास जाकर और उससे पहले की हालत कहकर खड़े रहे । इस पर वह मेढ़क बोला , "बड़े लोगों के क्रुद्ध होने पर उस बेचारे हाथी की क्या गिनती ? इसलिए तुम्हें मेरी सलाह से काम करना चाहिए । मक्खी ! तू दोपहर के समय जाकर उस मतवाले हाथी के कान में वीणा की झंकार के ऐसा गुनगुना, जिससे सुनने की लालच से उसकी आंखें बन्द हो जायें। बाद में कठफोड़वे की चोंच से आंखें फोड़ी जाकर अंधा बना हुआ वह हाथी प्यास से परेशान होकर एक गढ़े के पास परिवार के सहित बैठे हुए मेरी आवाज सुनकर आयेगा और उस गढ़े में गिरकर मर जायगा। हमें इस प्रकार योजना बनानी चाहिए कि जिससे बैर का बदला मिल सके।" बाद में यही किया गया और दोपहर में मक्खी का गाना सुनते हुए कान के सुख से जिसकी आंखें बन्द हो गई थीं', ऐसे हाथी की आंखें कठफोड़वे ने पीछे से आकर फोड़ डालीं, और बाद में मेढ़क की आवाज के पीछे जाता हुआ वह एक बड़े गढ़े में गिर गया। इसलिए मैं कहता हूं कि 'चकली, कठफोड़वा, मक्खी , मेढ़क आदि बहुतों के साथ लड़ाई करने से हाथी की मृत्यु हुई।' ___ टिटिहरे ने कहा, "यही हो । अपने मित्रों के साथ मैं समुद्र सोडूंगा।" इस प्रकार निश्चय करके बगला , सारस, मोर वगैरह पक्षिओं को बुलाकर उसने कहा , “अरे, समुद्र ने मेरे अंडों को चुराकर मेरी बेइज्जती की है, इसलिए उसके सोखने का उपाय विचारो।" उन्होंने आपस में विचार
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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