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________________ पञ्चतन्त्र "भगवति! वृथा रोने से क्या फायदा ? कहा भी है 'नष्ट हुए, मर गए तथा बीत गए लोगों का शोक पंडित नहीं करते, क्योंकि पंडितों और मूों में यही विशेषता कही गई है। इसी प्रकार "इस संसार में जीव अशोचनीय हैं। जो मूर्ख उनका शोक करता है वह एक दुख में दूसरा दुख पाता है, और इस तरह दो अनर्थों का सेवन करता है। सम्बन्धियों द्वारा गिराये गए आंसुओं और खखार भरा हुआ जीव परवश होकर खाता है। इसलिए रोना नहीं चाहिए, पर यत्नपूर्वक उसका क्रिया-कर्म करना चाहिए।" गौरय्या ने कहा, "यह बात ठीक है, पर इस दुष्ट हाथी ने मेरे बच्चों को मारा है , इसलिए अगर तू मेरा सच्चा मित्र है तो उस हाथी के मारने की तरकीब सोच कि जिससे बच्चों के मारने से पैदा हुआ मेरा दुख दूर हो। कहा है कि "आपत्ति के समय जिसने अपना उपकार किया हो उसका उपकार करने वाला और टेढ़े समय में जो अपने ऊपर हँसा हो उसका अपकार करने वाला, ऐसे व्यक्ति को मैं बड़ा मानती हूँ।" कठफोड़वे ने कहा, "भगवति ! आपने ठीक कहा । कहा भी है विपत्ति काल में जो दूसरी जाति का होते हुए भी मदद करे, वही मित्र है। रईसी में तो प्राणियों के सब मित्र ही होते हैं । "वही मित्र है जो तकलीफ में भी बना रहता है ; वही पुत्र है जो आज्ञाकारी है ; वही सेवक है जो काम करके बताता है ; और वही पत्नी है जिससे शांति मिले । तो आप अब मेरी बुद्धि का प्रभाव देखिये । वीणाखी नाम की एक मक्खी मेरी दोस्त है, उसे बुलाकर मैं लाता हूँ , जिससे वह दुष्ट हाथी मारा जा सके।" वाद में गौरय्या को साथ लेकर वह मक्खी के पास जाकर बोला , "भद्रे ! यह गौरय्या मेरी मित्र है । किसी दुष्ट हाथी ने इसके अंडे फोड़कर इसे बड़ा दुख दिया है । इसलिए उसको मारने के लिए तैयार
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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