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________________ मित्र-भेद सिंध नित्य नौ-नौ सौ नदियां लेकर प्रवेश करती हैं, ऐसे अठारह सौ नदियों से भरे जाने वाले समुद्र को केवल एक बूंद भरने वाली तेरी चोंच किस तरह सोख सकेगी ? ऐसी गप्प उड़ाने से क्या फायदा?" टिटिहरे ने कहा , "प्रिये ! उत्साह ही लक्ष्मी की जड़ है। मेरी चोंच लोहे जैसी है और रात-दिन काफी बड़े हैं, फिर समुद्र कैसे नहीं सूखेगा ? "जब तक पुरुष पुरुषार्थ नहीं करता तब तक उसे बड़ाई नहीं मिल सकती । सूर्य तुला में आरूढ़ होता है , (तुला राशि का होता है अथवा शत्रु पक्ष की तुलना में उसकी बढ़ती होती है) तब बादलों के ऊपर उसकी विजय होती है।" . टिटिहरी ने कहा, "यदि तुझे समुद्र के साथ बैर करना है तो दूसरे पक्षियों को बुलाकर मित्रों को साथ लेकर करो।" कहा है कि "निःसार वस्तुओं का समूह भी अजेय बन जाता है। तिनकों से बटे रस्से से हाथी भी बंध जाता है। उसी प्रकार "चकली , कठफोड़वा, मक्खी और मेढ़क इत्यादि बहुतों के साथ लड़ाई करने से हाथी की मृत्यु हुई।" टिटिहरे ने कहा , “यह कैसे ?" टिटिहरी ने कहा गौरय्या और हाथी की कथा "किसी वन में गौरय्ये का जोड़ा तमाल के वृक्ष में घोंसला बनाकर रहता था। समयांतर में उन्हें बच्चे हुए । एक दिन एक मतवाला हाथी गरमी से परेशान होकर छाया में बैठने के लिए तमाल वृक्ष के नीचे आया। बाद में उसने, जिस शाखा पर गौरय्ये का जोड़ा रहता था, उसे अपनी मस्ती में सूंड से तोड़ डाला। उसके टूटने से गौरय्ये के अंडे टूट-फूट गए। जान रहने से ही गौरय्या किसी तरह बच गई। पर अंडे टूट जाने से दुखित वह रोने से किसी तरह चुप ही नहीं होती थी। उसका रोना-कलपना सुनकर उसका परम मित्र और उसके दुख से दुखी कठफोड़वा ने आकर उससे कहा,
SR No.009943
Book TitlePanchatantra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishnusharma, Motichandra
PublisherRajkamal Prakashan
Publication Year
Total Pages314
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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